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________________ १८४] [मूलाचारे अनशनं पुनरित्तिरिययावज्जीवभेदाभ्यां द्विविधं ज्ञातव्यं इत्तिरिय साकांक्ष कालादिभिः सापेक्षं एतावन्तं कालमहमशनादिकं नानुतिष्ठामीति । निराकांक्ष भवेद् द्वितीयं यावज्जीवं आमरणान्तादपि न सेवनम् ॥३४७॥ साकांक्षानशनस्य स्वरूपं निरूपयन्नाह छटुट्ठमदसमदुवाबसेहिं मासद्धमासखमणाणि। कणगेगावलिआदी तवोविहाणाणि गाहारे'॥३४८॥ अहोरात्रस्य मध्ये द्वे भक्तवेले तत्रकस्यां भक्तवेलायां भोजनमेकस्याः परित्याग एकभक्तः । चतसृणां भक्तवेलानां परित्यागे चतुर्थः । षण्णां भक्तवेलानां परित्यागे षष्ठो द्विदिनपरित्यागः। अष्टानां परित्यागेऽष्ट मस्त्रय उपवासाः । दशानां त्यागे दशमश्चत्वार उपवासाः । द्वादशानां परित्यागे द्वादश: पंचोपवासाः । मासार्धपंचदशोपवासाः पंचदशदिनान्याहारपरित्यागः । मास-मासोपवासास्त्रिशदहोरात्रमात्रा अशनत्यागः । क्षमणान्युपवासाः । आवलीशब्दः प्रत्येकमभिसम्बध्यते। कनकावली चैकावली च कनकावल्येकावल्यो तो विधी आदिर्येषां तपोविधानानां कनकैकावल्यादीनि । आदिशब्देन मुरजमध्य-विमानपंक्ति-सिंहनिष्क्रीडितादीनां आचारवृत्ति-इत्तिरिय-इतने काल तक और यावज्जीव-जीवनपर्यन्त तक के भेद से अनशन तप दो प्रकार का है। उसमें 'इतने काल पर्यन्त मैं अनशन अर्थात् भोजन आदि का अनुष्ठान नहीं करूंगा' ऐसा काल आदि सापेक्ष जो अनशन होता है वह इत्तिरिय-साकांक्ष अनशन तप है। जिसमें मरण पर्यन्त अशन आदि का त्याग कर दिया जाता है वह यावज्जीवन निराकांक्ष नाम का दूसरा तप होता है। अब साकांक्ष अनशन का स्वरूप कहते हैं गाथार्थ-वेला, तेला, चौला, पांच उपवास, पन्द्रह दिन और महीने भर का उपवास कनकावली, एकावली आदि तपश्चरण के विधान अनशन में कहे गये हैं । ॥३४८॥ प्राचारवत्ति-अहोरात्र के मध्य भोजन की दो वेला होती हैं। उनमें से एक भोजन वेला में भोजन करना और एक भोजन वेला में भोजन का त्याग करना यह एकभक्त है । चार भोजन वेलाओं में चार भोजन का त्याग करना चतुर्थ है । अर्थात् धारणा और पारणा के दिन एकाशन करना तथा व्रत के दिन दोनों समय भोजन का त्याग करके उपवास करना-इस तरह चार भोजन का त्याग होने से जो उपवास होता है उसे चतुर्थ कहते हैं। छह भोजन वेलाओं के त्याग में षष्ठ कहा जाता है । अर्थात् धारणा-पारणा के दिन एकाशन तथा दो दिन का पूर्ण उपवास इसे ही षष्ठ-वेला कहते हैं । आठ भोजन वेलाओं में आठ भोजन का त्याग करने से अष्टम अर्थात् तेला कहा जाता है। दश भोजन वेलाओं के त्याग करने पर दशमचार उपवास होते हैं। बारह भुक्तियों के त्याग से द्वादश-पाँच उपवास हो जाते हैं । पन्द्रह दिन तक आहार का त्याग करने से अर्धमास का उपवास होता है। तीस दिनरात तक भोजन का त्याग करने से एक मास का उपवास होता है । तथा कनकावली, एकावली आदि भी तपो १क गाहारो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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