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________________ २७८] [मूलाधारे भावना: पंच । एता भावयन् जीवदयां प्रतिपालयति । प्रथममहाव्रतं परिपूर्ण तिष्ठति । तस्य साधनत्वेन पंच भावना जानीहीति ॥३३७॥ द्वितीयस्य निरूपयन्नाह कोहभयलोहहासपइण्णा अणुवीचिभासणं चेव । बिदियस्स भावणाओ वदस्स पंचेव ता होंति ॥३३८॥ क्रोधभयलोभहास्यानां प्रतिज्ञा प्रत्याख्यानं। क्रोधस्य प्रत्याख्यानं भयस्य प्रत्याख्यानं लोभस्य प्रत्याख्यानं हास्यस्य प्रत्याख्यानं । अनुवीचिभाषणं चैव सूत्रानुसारेण भाषणं च द्वितीयस्य सत्यव्रतस्य भावनाः पंचैव भवन्ति । पंचैता भावना भावयतः सत्यव्रतं सम्पूर्ण स्यादिति ॥३३८॥ तृतीयव्रतस्य भावनास्वरूपं विवृण्वन्नाह जायणसमणुण्णमणा अणण्णभावोवि चत्तपडिसेवी। साधम्मिग्रोवकरणस्सणुवीचीसेवणं चावि ॥३३॥ याञ्चा प्रार्थना समनुज्ञापना यस्य सम्बन्धि किंचिद्वस्तु तमनुमन्य ग्रहणं गृहीतस्य वा सम्बोधनं । अनन्यभावोऽदुष्टभावोऽनात्मभावः परवस्तुनः परिगृहीतस्यात्मभावो न कर्तव्यः । त्यक्तं श्रामण्ययोग्यं, अन्ये और आलोक्य भोजन अर्थात् आगम और सूर्य के प्रकाश में देख-शोधकर भोजन करना अहिंसाव्रत की ये पाँच भावनाएँ हैं । मुनि इन भावनाओं को भाते हुए जीवदया का पालन करते हैं। अर्थात् उनके प्रथम महावत परिपूर्ण होता है। तुम इन पाँच भावनाओं को उस व्रत के साधन हेतु जानो। अब द्वितीय व्रत की भावना का निरूपण करते हैं गाथार्थ-क्रोध, भय, लोभ और हास्य का त्याग तथा अनुवीचिभाषण द्वितीय व्रत की ये पाँच ही भावनाएँ होती हैं ॥३३॥ प्राचारवत्ति-क्रोध का त्याग, भय का त्याग, लोभ का त्याग और हास्य का त्याग तथा सूत्र के अनुसार वचन बोलना ये पाँच भावनाएँ सत्य महाव्रत की हैं। अर्थात् इन भावनाओं को भाते हुए सत्यव्रत परिपूर्ण हो जाता है। विशेषार्थ-ये भावनाएँ श्रीगौतम स्वामी और उमास्वामी ने इसी रूप मानी हैं। अव तृतीय व्रत की भावना का स्वरूप कहते हैं--- गाथार्थ-याचना, समनुज्ञापना, अपनत्व का अभाव, त्यक्तप्रतिसेवना और सामिकों के उपकरण का उनके अनुकूल सेवन ये पाँच भावनाएँ तृतीय व्रत की हैं ॥३३॥ प्राचारवत्ति-याञ्चा-प्रार्थना करना अर्थात् अपेक्षित वस्तु के लिए गुरु या सहधर्मी मुनि से विनय पूर्वक माँगना। ममन्नापना --किसी मुनि की कोई भी वस्तु उनकी अनुमति लेकर ग्रहण करना। अथवा कदाचित् बिना अनुमति के ले भी ली हो तो पुनः उनसे निवेदन कर देना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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