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पंचाचाराधिकारः]
[२५६ ह्रस्ववृत्तचतुरस्रादि, कुरूप-सुरूप-पंडित-मूर्ख-पूर्वापरादिकमपेक्ष्यसिद्धं निष्पन्नमपेक्ष्य सत्यमित्युच्यते। न तत्र विवादः कार्यः । तथा, रध्यदे पच्यते कर ओदनः मण्डका: घतपूराः इत्यादि लोके वचनं व्यवहारसत्यमिति वाच्यं । न तत्र विवादः कार्यः । यद्यौदन: पच्यते भस्म भवति, मण्डका यदि पच्यन्ते भस्मीभवन्तीति कृत्वेति व्यवहारसत्यं वचनं सत्यमिति ॥३११॥
संभावणा य सच्चं जदि णामेच्छेज्ज एव कुज्जंति।
जदि सक्को इच्छेज्जो जंबूदीवं हि पल्लत्थे ॥३१२॥
यदि नामैतदेवमिच्छेत्, एवं कुर्यात् यदेतत्संभावना सत्यं । संभाव्यत इति संभावना । सा द्विविधाभिनीतानभिनीतभेदेन । शवयानुष्ठानाभिनीता । अस्ति सामर्थ्य यदुत नाम तथा न सम्पादयेदनभिनीता। यथा यदि नाम शक्र इच्छेज्जम्बूद्वीपं परिवर्तयेत् । संभाव्यत एतत्सामर्थ्यमिन्द्रस्य यज्जम्बूद्वीपमन्यथा कुर्यात् । अपि शिरसा पर्वतं भिन्द्यात्।सर्वमेतदनभिनीता संभावना सत्यं । अपि भवान् प्रस्थं भक्षयेत् । बाहुभ्यां गंगां तरेदेतदभिनीतं सम्भावनासत्यमिति सम्पाद्यासम्पाद्यभेदेनेति ॥३१२॥ कर सकते हैं । तीन लोक में सबसे बड़ा मेरुपर्वत है।
उसी प्रकार से ह्रस्व, गोल और चौकोन आदि भी एक दूसरे की अपेक्षा से ही हैं। तथा कुरूप-सुरूप, पण्डित-मूर्ख, पूर्व-पश्चिम ये सब एक-दूसरे को अपेक्षित करके होते हैं अतः इनका कथन अपेक्ष्य सत्य या प्रतीत्य सत्य है । इसमें किसी को विवाद नहीं करना चाहिए।
उसी प्रकार भात पकाया जाता है, मंडे-रोटी या पुआ पकाये जाते हैं। इत्यादि प्रकार के वचन लोक में देखे जाते हैं यह सब व्यवहार सत्य है। इसमें भी विवाद नहीं करना चाहिए । वास्तव में यदि भात पकाया जावे तो वह भस्म हो जाए, और यदि रोटी पकायी जावें तो वे भी भस्मीभूत हो जाएँ, किन्तु फिर भी व्यवहार में वैसा कथन होता है अतः यह व्यवहार सत्य है । यहाँ पर प्रतीत्य सत्य और व्यवहार सत्य इन दो का लक्षण बताया है।
गाथार्थ-'यदि चाहे तो ऐसा कर डालें' ऐसा कथन सम्भावना सत्य है। यदि इन्द्र चाहे तो जम्बू द्वीप को पलट दे॥३१२॥
प्राचारवृत्ति-'यदि यह ऐसी इच्छा करे तो कर डाले' जो ऐसा कथन है वह सम्भावना सत्य है। जो सम्भावित किया जाता है उसे सम्भावना कहते हैं। इसके दो भेद हैं-अभिनीत और अनभिनीत । जो शक्यानुष्ठानरूप वचन हैं अर्थात् जिनका करना शक्य है वे वचन अभिनीत सम्भावना सत्य हैं और जिसकी सामर्थ्य तो है किन्तु वैसा करते नहीं हैं ऐसे (अशक्यानुष्ठान) वचन अनभिनीत सम्भावना सत्य हैं। जैसे; 'इन्द्र चाहे तो जम्बूद्वीप को पलट दे' इस वचन में इन्द्र की यह सामर्थ्य सम्भावित की जा रही है कि यह चाहे तो जम्बूद्वीप को अन्य रूप कर सकता है किन्तु वह ऐसा कभी करता नहीं है । और भी उदाहरण हैं, जैसे यह शिर से पर्वत को फोड़ सकता है, ये सभी वचन अनभिनीत सम्मावना सत्यरूप हैं। यदि यह चाहे तो प्रस्थ (सेर भर) खा जावे, यह अपनी भुजाओं से गंगा को तिर सकता है। यह सब वचन अभिनीत सम्भावना सत्य हैं। इस प्रकार से सम्पाद्य और असम्पाद्य के भेद से सम्भावना सत्य दो प्रकार का है। अर्थात् सम्पादित होने योग्य और न होने योग्य की अपेक्षा अथवा अभिनीत-शक्य और अनभिनीत-अशक्य की अपेक्षा से इस सत्य के दो भेद हो जाते है।
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