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[मूलाधारे
यद्यपि देवतादिप्रतिरूपं स्थापनया स्थापितं । तथा च देवदत्तादिनाम । न हि तत्र देवतादिस्वरूपं विद्यते । नापि तं (?) देवैर्दत्तोऽसौ । तथापि व्यवहारनयापेक्षया स्थापनासत्यं, नामसत्यं च सत्यमित्युच्यते सद्भिरिति । अर्हत्प्रतिमा- सिद्धप्रतिमादि तथा नागयक्षेन्द्रादिप्रतिमाश्च तत्सर्वं स्थापनासत्यं । तथा देवदत्त इन्द्रदत्तो यज्ञदत्तो विष्णुमित्र इत्येवमादिवचनं नामसत्यमिति । तथा वर्णेनोत्कटतरेति श्वेता बलाका । यद्यपि तत्रान्यानि रक्तादीनि सम्भवन्ति रूपाणि, तथापि श्वेतेन वर्णेनोत्कृष्टतरा बलाका, अन्येषामविवक्षितत्वादिति रूपसत्यं द्रव्यार्थिकनयापेक्षया वाच्यमिति ॥ ३१०॥
प्रणं पेक्खसिद्ध पडुच्चसच्चं जहा हवदि दिग्घं । ववहारेण य सच्चं रज्झदि कूरो जहा लोए ॥३११॥
अन्यद्वस्तुजातमपेक्ष्य किंचिदुच्यमानं प्रतीत्यसत्यं भवति । यथा दीर्घोऽयमित्युच्यते । वितस्तिमात्राद्धतमात्र दीर्घ तथा द्विहस्तमात्रात्पंच हस्तमात्र | पंचहस्तमात्राद्दशहस्तमात्रं । एवं यावन्मेरुमात्र । तथैवं ( व )
श्राचारवृत्ति - यद्यपि देवता आदि की प्रतिमाएँ स्थापना निक्षेप के द्वारा स्थापित की गई हैं। उसी प्रकार से देवदत्त आदि नाम रखे जाते हैं । उनमें देवता आदि का स्वरूप विद्यमान नहीं है और न ही देवदत्त आदि पुरुष देवों के द्वारा दिये गये हैं । फिर भी, व्यवहार नय की अपेक्षा से सज्जन पुरुषों द्वारा वे स्थापनासत्य और नामसत्य कहे जाते हैं । अर्थात् अर्हन्त प्रतिमा, सिद्ध प्रतिमा आदि तथा नागयक्ष की प्रतिमा और इन्द्र की प्रतिमा आदि जो हैं वे सभी स्थापना - सत्य हैं । तथा देवदत्त, इन्द्रदत्त, यज्ञदत्त और विष्णुमित्र इत्यादि प्रकार के वचन नाम सत्य हैं अर्थात् देवदत्त को देव ने नहीं दिया है, इन्द्रदत्त को इन्द्र ने नहीं दिया है इत्यादि; फिर भी नामकरण से उन्हें उसी नाम से जाना जाता है ।
उसी प्रकार से वर्ण से उत्कृष्टतर होने से बगुला को सफेद कहते हैं । यद्यपि उस बगुला में लाल चोंच, कालो आँखें आदि अन्य अनेक रूप सम्भव हैं, फिर भी श्वेत वर्ण इसमें उत्कृष्टतर होने से इसे श्वेत कहते हैं, क्योंकि अन्य वर्ण वहाँ पर अविवक्षित हैं इसलिए यह रूपसत्य द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से वाच्य है ।
विशेषार्थ - किसी वस्तु में यह वही है ऐसी स्थापना स्थापनासत्य है, जैसे पाषाण की प्रतिमा में यह महावीर प्रभु हैं। किसी में जाति आदि गुण की अपेक्षा न करके नाम रख देना यह नाम सत्य है; जैसे किसी बालक का नाम आदीश कुमार रखा जाना। किसी वस्तु में अनेक वर्ण होने पर भी उसमें जो प्रधान है, अधिक है उसी की अपेक्षा रखना यह रूपसत्य है जैसे बगुला सफेद होता है। यहाँ तीन प्रकार के सत्य का वर्णन हुआ।
गाथार्थ — अन्य की अपेक्षा करके जो सिद्ध हो वह प्रतीति सत्य है; जैसे यह दीर्घ है | व्यवहार से कथन व्यवहार सत्य है; जैसे भात पकाया जाता है ऐसा कथन लोक में देखा जाता है ।। ३११ ।।
श्राचारवृत्ति - अन्य वस्तु की अपेक्षा करके जो कुछ कहा जाता है वह प्रतीत्य सत्य है; जैसे किसी ह्रस्व की अपेक्षा करके कहना कि यह दीर्घ है । एक वितस्ति के प्रमाण से एक हाथ दीर्घ है, उसी प्रकार से दो हाथ प्रमाण से पाँच हाथ का प्रमाण बड़ा है और पाँच हाथ मात्र से दश हाथ का प्रमाण बड़ा है, इस प्रकार से मेरुपर्यन्त तक भी आप बड़े की व्यवस्था
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