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________________ पंचाचाराधिकारः] [२५७ सत्यशब्द: प्रत्येकमभिसंबध्यते। जनपदसत्यं, बहुजनसम्मतसत्यं, स्थापनासत्यं, नामसत्यं, रूपसत्यं, प्रतीतिसत्यमन्यापेक्षसत्यमित्यर्थः, संभावनासत्यं, व्यवहारसत्यं, भावसत्यं उपमानसत्यं इति दशधा सत्यं वाच्यमिति सम्बन्धः ॥३०॥ एतानि दशसत्यानि विवृण्वन्नाह-- जणपदसच्चं जध प्रोदणादि य वुच्चवियसव्वभासेण । बहुजणसम्मदमवि होदि जं तु लोए जहा देवी ॥३०६।। जनपदसत्यं देशसत्यं । यथीदनादिरुच्यते सर्वभाषाभिः द्रविडभाषया चौर इत्युच्यते । कर्णाटभाषया कूल इत्युच्यते । गौडभापया भक्तमित्युच्यते। एवं नानादेशभाषाभिरुच्यमान ओदनो जनपदसत्यमिति जानीहि । बहुभिर्जनैर्यत्सम्मतं तदपि सत्यमिति भवति । यथा महादेवी, मानुष्यपि लोके महादेवीति । यथा देवो वर्षतीत्यादिकं वचनं लोकसम्मतं सत्यमिति वाच्यं । न प्रतिबन्धः कार्यः एवं न भवतीति कृत्वा । प्रतिबन्धे सत्यमसत्यं स्यादिति ॥३०६।। ठवणा ठविदं जह देवदादि णामं च देवदत्तादि। उक्कडदरोत्तिं वण्णे रूवे सेप्रो जध बलाया ॥३१०॥ प्राचारवृत्ति-सत्य शब्द का प्रत्येक के साथ सम्बन्ध कर लेना चाहिए । जनपदसत्य, बहुजनसम्मतसत्य, स्थापनासत्य, नामसत्य, रूपसत्य, प्रतीतिसत्य-अन्य की अपेक्षा सत्य, संभावनासत्य, व्यवहारसत्य, भावसत्य और उपमानसत्य । इस प्रकार से दशभेद रूप इन सत्य वचनों को बोलना चाहिए। इन दशभेदरूप सत्य का वर्णन करते हैं गाथार्थ-जनपदसत्य, जैसे सभी भाषाओं में व्यवहृत ओदन आदि शब्द । बहुजनसम्मत सत्य भी यह है कि जैसे लोक में मानुषी को महादेवी कहना ।।३०६।। आचारवृत्ति-जनपदसत्य अर्थात् देशसत्य। जैसे जनपद की सभी भाषाओं में ओदन (भात) आदि को अन्य-अन्य शब्दों से कहा जाता है। द्रविड़ भाषा में ओदन को 'चौर' कहते हैं, कर्णाटक भाषा में 'कूल' कहते हैं और गौड़ भाषा में 'भक्त' कहते हैं। ऐसे ही नाना देशों में उन-उन भाषाओं के द्वारा कहा गया 'ओदन' जनपद सत्य है ऐसा तुम जानो। जो बहुत जनों को सम्मत है वह भी सत्य है। जैसे किसी मनुष्य-स्त्री को भी लोक में महादेवी कहते हैं, और जैसे 'देव बरसता है' इत्यादि वचन लोकसम्मत सत्य हैं। अर्थात् मेघ बरसता है किन्तु व्यवहार में लोग कहते हैं कि देव बरसता है यह सम्मत सत्य है। इन वचनों में 'यह ऐसा नहीं है ऐसा कहकर आप प्रतिबन्ध नहीं लगा सकते; और यदि आप प्रतिबन्ध लगायेंगे तो आपके सत्यवचन भी असत्य कहे जायेंगे। इस गाथा में जनपद सत्य और सम्मतसत्य को कहा है।। गाथार्थ—जिसमें स्थापना की गई है वह स्थापना-सत्य है; जैसे यह देवता है, इत्यादि । नामकरण को नाम सत्य कहते हैं; जैसे देवदत्त आदि । रूप में वर्ण की उत्कृष्टता से कहना रूपसत्य है; जैसे बगुला सफेद है ।।३१०॥ १.क सम्वभासाएं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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