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________________ पंचाचाराधिकारः] [१७३ क इमे इत्यत आह पुढवी य बालुगा सक्करा य उवले सिला य लोणे य। अय तंव तउय सीसय रुप्प सुवण्णे य वइरे य ॥२०६॥ हरिदाले हिंगुलये मणोसिला सस्सगंजण पवालेय। अग्भपडलन्भवालुय बादरकाया मणिविधीय ॥२०७॥ गोमझगेय रुजगे अंके फलिहे लोहिदंकेय । चंदप्पभेय वेरुलिए जलकते सूरकतेय ॥२०॥ गेरुय चंदण वव्वग वय मोए तह मसारगल्ले य। ते जाण पुढविजीवा जाणित्ता परिहरेदव्वा ॥२०॥ बिलोडा गया, इधर-उधर फैलाया गया और छना हुआ पानी सामान्य जल है। जलकायिक जीवों से छोड़ा गया पानी और गरम किया गया पानी जलकाय है। जिसमें जलजीव हैं वह जलकायिक और जल काय में उत्पन्न होनेवाला विग्रहगतिवाला जीव जलजीव है। इधर-उधर फैली हुई या जिस पर जल सींच दिया गया है या जिसका बहुभाग भस्म बन चुका है, या किंचित् गरम मात्र ऐसी अग्नि सामान्य अग्नि है । अग्निजीव के द्वारा छोड़ी हुई अग्नि भस्म आदि अग्निकाय है । जिसमें अग्निजीव मौजूद है वह अग्निकायिक और अग्निकाय में उत्पन्न होने के लिए विग्रह गतिवाला अग्निजीव है। जिसमें वायुकायिक जीव आ सकता है ऐसी वायु को अर्थात् केवल सामान्य वायु को वायु कहते हैं। वायुकायिक जीव के द्वारा छोड़ी गयी, पंखा आदि से चलाई गयी, वायू, हमेशा विलोडित की गयी वायु वायुकाय है। वायुकायिक जीव से सहित वायुकायिक है और वायुकायिकी में उत्पन्न से पूर्व विग्रहगतिजीव वायुजीव है। गीली, छेदी गयी, भेदी गयी या मदित की गयी लता आदि यह सामान्य वनस्पति है। सखी आदि वनस्पति जिसमें वनस्पति जीव नहीं है वह वनस्पतिकाय है। वनस्पतिकायिक जीव सहित वनस्पतिकायिक है और वनस्पतिकाय में उत्पन्न होनेवाला विग्रहगति वाला जीव वनस्पति जीव है । इस प्रकार से इनके उदाहरण तत्त्वार्थवृत्ति अ० २ सूत्र १३ में दिये गये हैं। वे भेद कौन हैं ? सो ही बताते हैं गाथार्थ-मिट्टी, बालू, शर्करा, उपल, शिला, लवण, लोहा, ताँबा, रांगा, सीसक चाँदी, सोना और हीरा। हरिताल, हिंगुल, मैनसिल, सस्यक, अंजन, प्रवाल, अभ्रक और अभ्रवालू ये बादरकाय हैं। और अब मणियों के भेद कहते हैं गोमेदमणि, रुचकमणि, अंकमणि, स्फटिकमणि, पद्मरागमणि, चन्द्रप्रभ, वैडूर्य, जलकान्त और सूर्यकान्त ये मणि हैं। गेरु, चन्दन, वप्पक, वक, मोच तथा मसारगल्ल ये मणि हैं। इन पृथिवीकायिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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