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________________ २] মুিখাজা हंदि चिरभाविदावि य जे पुरुसा मरणदेसयालम्मि। पुव्वकदकम्मगरुयत्तणेण पच्छा परिबडंति ॥५४॥ हंदि-जानीहि-सामान्यमरणं वा। चिरभाविदावि य–चिरभाविता अपि देशोनपूर्वकोटी कृताचरणा अपि। जे–यस्त्वं वा पुरुषैः सह सम्बन्धाभावात्। पुरिसा-पुरुषा मनुष्याः । मरणदेशयालम्मि-मरणकाले मरणदेशे वा अथवा मरणकाल एवानेनाभिधीयते। पुवकदकम्मगरुयत्तणेण—पूर्वस्मिन् कृतं कर्म पूर्वकृतकर्म तेन गुरुकं तस्य भावः पूर्वकृतकर्मगुरुकत्वं तेनान्यस्मिन्नजितपापकर्मणा। पच्छापश्चात् । परिवडंति-प्रतिपतन्ति रत्नत्रयात् पृथग्भवन्ति यत ॥४॥ तह्मा चंदयवेन्झस्स कारणेण उज्जदेण पुरिसेण । जीवो अविरहिदगुणो कादम्वो मोक्खमग्गमि ॥८॥ तम्हा---तस्मात् । चंदयवेज्झस्स-चंद्रकवेध्यस्य । कारणेन- -निमित्तेन । उज्जदेण-उद्यतेन उपर्युक्तेन । पुरिसेण-पुरुषेण । जीवो-जीव: आत्मा। अविरहिदगणो-अविरहितगुणोऽविराधितपरिणामः । कादवो-कर्तव्यः। मोक्खमम्गम्मि-मोक्षमार्गे सम्यक्त्वज्ञ चारित्रेषु। यतश्चिरभाविता अपि पुरुषा मरणदेशकाले पूर्वकृतकर्मगुरुकत्वेन पश्चात् प्रतिपतन्ति तस्मात् यथा चन्द्रकवेध्यनिमित्तं जीवोऽविरहितगुणः क्रियते तथोद्यतेन पूरुषेणात्मा मोक्षमार्गे कर्तव्य इत्येवं जानीहि निश्चयं कूविति ॥८॥ ___ गाथार्थ-जिन्होंने चिरकाल तक अभ्यास किया है ऐसे पुरुष भी मरण के देश-काल में पूर्व में किये गये कर्मों के भार से पुनः च्युत हो जाते हैं, ऐसा तुम जानो।1८४॥ आचारवत्ति - जिन्होंने चिरकाल तक तपश्चरण आदि का अभ्यास किया है अर्थात् कुछ कम एककोटि वर्ष पूर्व तक जिन्होंने रत्नत्रय का पालन किया है ऐसे पुरुष भी मरण के समय अथवा मरण के देश में अथवा यहाँ इस 'मरणदेश काले' पद का मरणकाल ही अर्थ लेना चाहिए । अर्थात् ऐसे पुरुष भी सल्लेखना के समय पूर्वकृत पापकर्म के तीव्र उदय से रत्नत्रय से पृथक् हो जाते हैं, च्युत हो जाते हैं । हे क्षपक ! ऐसा तुम समझो। गाथार्थ-इसलिए चन्द्रकवेध्य के कारण में उद्यत पुरुष के समान आत्मा को मोक्षमार्ग में गुण-सहित करना चाहिए ॥८॥ आचारवृत्ति-इसलिए चन्द्रकवेध्य का वेध करने में उद्यत पुरुष के समान तुम्हें अपनी आत्मा के परिणामों की विराधना न करके उसे सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्ररूप मोक्षमार्ग में स्थिर करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि जिस कारण से चिरकाल से अभ्यास करनेवाले भी पुरुष मरणकाल में पूर्व संचितकर्म के तीव्र उदय से रत्नत्रय से च्युत हो जाते हैं इसलिए जैसे चन्द्रकवेध्य के लिए जीव उस गुण में प्रवीण किया जाता है अथवा वह चन्द्रकवेध्य का निशाना बनाने के लिए गुण अर्थात डोरी पर वाण को चढाता है, पूनः निशाना लगाकर वेधन करता है उसी प्रकार उद्यमशील पुरुष को अपनी आत्मा मोक्षमार्ग में स्थिर करना चाहिए, ऐसा तुम जानो अर्थात् निश्चय करो। चन्द्रकवेध्य के निमित्त जीव डोरी रहित न होने पर 'मैं चन्द्रकवेध्य का करने वाला हूँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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