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मूलाचार
जिणवयणे अणुरता गुरुवयणं जे करंति भावेण ।
असबल असंकिलिट्ठा ते होंति परित्तसंसारा ॥७२॥ जिणवयणे-जिनस्य वचनमागमः तस्मिन्नर्हत्प्रवचने । अणुरत्ता-अनुरक्ताः सुष्ठु भक्ताः । गुरुवयणं--गुरुवचनमादेशं, जे करंति-ये कुर्वति, भावेण-भावेन भवत्या मंत्रतंत्रशास्त्रानाकांक्षया। असबलअशवला मिथ्यात्वरहिताः । असंकिलिट्ठा-असंक्लिष्टाः शुद्धपरिणामाः । ते होंति-ते भवति । परित्तसंसारा-परीतः परित्यक्तः परिमितो वा संसारः चतुर्गतिगमन येषां यैर्वा ते परीतसंसाराः परित्यक्तसंसृतयो वा। जिनप्रवचने येऽनुरक्ताः गुरुवचनं च भावेन कुर्वन्ति, अशबलाः, असंक्लिष्टाः सन्तस्ते परित्यक्तसंसारा भवन्तीति। यदि जिनवचनेऽनुरागो न स्यादतः किं स्यादतः प्राह
बालमरणाणि बहुसो बहुयाणि अकामयाणि मरणाणि।
मरिहंति ते वराया जे जिणवयणं ण जाणंति ॥७३॥ बालमरणाणि-बालानामतत्त्वरुचीनां मरणानि शरीरत्यागा बालमरणानि । बहुसो-बहुशः बहूनि बहुप्रकाराणि वा । बहुआणि-बहुकानि प्रचुराणि । अकामयाणि-अ ..नि अनभिप्रेतानि । मरणाणि-मृत्यून् । मरिहंति-मरिष्यन्ति मृत्यु प्राप्स्यन्तीत्यर्थः । ते वराया-त एवंभूता वराका अनाथाः । जे जिणवयणं-ये जिनवचनं सर्वज्ञागमं । ण जाणंति-न जानन्ति नावबुध्यते। ये जिनवचनं न जानन्ति ते वराका बालमरणानि बहुप्रकाराणि अकामकृतानि च बहूनि मरणानि प्राप्स्यन्तीति ।
गाथार्थ-जो जिनेन्द्रदेव के वचनों में अनुरागी हैं, भाव से गुरु की आज्ञा का पालन करते हैं, शबल-परिणाम रहित हैं तथा संक्लेशभाव रहित हैं वे संसार का अन्त करनेवाले होते हैं ॥७२॥
आचारवृत्ति-जो अर्हन्त देव के प्रवचन रूप आगम के अच्छी तरह भक्त हैं, मन्त्रतन्त्र की या शास्त्रों की आकांक्षा से रहित होकर भक्तिपूर्वक गुरुओं के आदेश का पालन करते हैं, मिथ्यात्व भाव रहित हैं और शुद्ध-परिणामी हैं वे चतुर्गति में गमन रूप संसार को परिमित करनेवाले अथवा संसार को समाप्त करनेवाले हो जाते हैं।
यदि जिनवचन में अनुराग नहीं होगा तो क्या होगा? ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं
गाथार्थ जो जिनवचन को नहीं जानते हैं वे बेचारे अनेक बार बालमरण करते हुए अनेक प्रकार के अनिच्छित मरणों से मरण करते रहेंगे ॥७३।।
प्राचारवृत्ति—जो सर्वज्ञ देव के आगम को नहीं जानते हैं वे बेचारे अनाथ प्राणी, जो अपने लिए अभिप्रेत अर्थात् इष्ट नहीं हैं ऐसे, अनेक प्रकार के मरण से बार-बार मरते रहते हैं ।
. भावार्थ-यहाँ बालमरण से विवक्षा बालबालमरण की है जो कि मिथ्यादष्टि जीवों के होता है क्योंकि ऊपर गाथा ५६ में बालमरण का लक्षण करते हुए टीकाकार ने असंयतसम्यग्दृष्टि के मरण को कहा है। तथा अन्य ग्रन्थों में भी बालबालमरण करनेवाले मिथ्यादृष्टि माने गये हैं। उन्हीं का यहाँ कथन समझना चाहिए।
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