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प्रस्तावना
यहाँ प्रथम और तृतीय चरणोंमें अयुतावृत्तिमलक पादयमक है । यहाँ विसर्गकृत दोष नहीं है, जैसा कि वाग्भटा० (१,२० ) में बतलाया गया है। पादयमक-शस्त्रप्रहारैर्गुरुभिः समुदा येन योजितः।
तेनामर्षात् पुनः सोऽस्त्रसमुदायेन योजितः॥१५,४५ यहाँ द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में अयुतावृत्तिमूलक पादयमक है । पदयमक-सेना सेना यती बद्धराजिराजिसमुत्सुका ।
चक्रे चक्रेषुखङ्गास्त्रसारा सारातिसाध्वसम् ।।१५,२० यहाँ संयुतावृत्तिमलक प्रतिपादादि पदयमक है। पदयमक-वणिक्पथस्तूपितरत्नसंचयं समस्ति तस्मिन्नथ रत्नसंचयम् ।
पुरं यदालानितमत्तवारण विभाति हम्यश्च समत्तवारणैः ॥१,२१ यहाँ अयुतावृत्तिमलक प्रत्यर्धभागभिन्न पादान्त्य पदयमक है । पदयमक-यथा पलाशास्तत्रेश शोभन्ते नव किंशुकैः।
तथैव जम्बूतरवो विराजन्ते न किंशुकैः ॥२,१७ यहाँ अयुतावृत्तिमूलक पद्यार्धान्त्य पदयमक है । पदयमक-भयात् पलायमानस्य कामस्य गलितः करात् ।
बाणावलिरिवाभाति बाणावलिरितस्ततः ॥२,२० यहाँ अयुतावृत्तिमूलक तृतीय-चतुर्थ पादादिगत पदयमक है । पदयमक-तत्र शासति महीं जनतायास्त्रातरि क्रमसरोजनतायाः।
मोदयन्मधुरभून्मधुपानां संतति कृतगलन्मधुपानाम् ॥८,१ यहां अयुतावृत्तिमूलक प्रथम-द्वितीय-तृतीय-चतुर्थपादान्तगत पदयमक है । चं० च० के आठवें, चौदहवें तथा पन्द्रहवें सर्गमें ऐसे ही उदाहरण और भी हैं । वर्णयमक-सपोरः ससुहृद्वर्गः सकलत्रः सबान्धवः ।
सतनूजः ससामन्तः स चचाल ससैनिकः ॥२,३० यहाँ अयुतावृत्तिमूलक आद्यन्त वर्णयमक है। एकाक्षरचित्र-रैरोरा रैररैरेरी रोरो रोरुररेररि
रुरूरूरुरुरूरूरोरारारीरैरुरोररम् ॥१५,३९ आदिसे अन्त तक केवल 'र' व्यञ्जनके होनेसे यहाँ एक व्यञ्जनचित्र या एकाक्षरचित्र है। द्वयक्षरचित्र-धीरधीरारिरुधिरैरुरुधाराधरैररम ।
धरा धराधराधारा रुरुधेऽधोऽधराधरा ॥१५,४९ आदिसे अन्त तक 'ध' और 'र'-इन दो व्यञ्जनोंके रहनेसे यहां द्विव्यञ्जनचित्र या द्वयक्षर चित्र है। काकूवक्रोक्ति-विशदामसमुज्झितान्वयां नयसारामविहीनसौष्ठवाम् ।
गिरमेष कदाचिदीदशीमभिदध्यादथवा बृहस्पतिः ॥१२,१०० 'अथवा बृहस्पति भी कभी ऐसे वचन कह सकते हैं ?'-इस तरह कण्ठध्वनिके परिवर्तनके साथ अर्थ करनेपर यहाँ 'काकुवक्रोक्ति' अलङ्कार घटित होता है।
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