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________________ प्रस्तावना तैयार कर रही हो । ऐसी अनूठी कल्पना रघुवंश आदिमें खोजनेपर भी नहीं मिली । चं० च०के इस प्रसङ्गके अन्य पद्य भी अभिनव कल्पनाओंसे अनुस्यूत हैं, अत: चं० च० का यह प्रसङ्ग रघुवंश आदि चारों काव्यों के समीक्ष्य सन्दर्भसे कहीं अधिक स्तुत्य है। प्रस्तुत प्रसङ्ग के नैषध (१६, १२७), माघ ( १३, ३५), रघुवंश (७, ११) तथा चं० च० ( ७, ८७ ) के पद्योंमें क्रमश: चमत्कृति अधिक है । नैषधका यह पद्य अनेक दृष्टियोंसे दोषपूर्ण भी है। यों नैषध श्रेष्ठ महाकाव्यों में-से एक है, पर उक्त पद्य उसके रूपके अनुरूप नहीं है ।। ८. ऋतुवर्णन-ऋतुओंका वर्णन प्रायः सभी महाकाव्योंमें रहता है। रघुवंश (९, २४-४७ ) में वसन्त, किरात ( १०, १९-३६) में वर्षा, हेमन्त, वसन्त और ग्रीष्म एवं ( ४,१-३६ ) में शरद्, माघ ( ६, १-७९) में सभी तथा चं० च० (८, १-५१) में वसन्त वर्णित है । नैषध (१, ७५-१०६) में नलके क्रीडावनमें एक ही साथ अनेक ऋतुओंके फूल, फल और पक्षी वर्णित हैं, इसके अतिरिक्त स्वतन्त्र ऋतु वर्णन नहीं किया गया। इस प्रसंगके पद्योंमें भारवि और श्रीहर्षको छोड़कर शेष ( कालिदास, माघ और वीरनन्दी) ने यमकका प्रयोग किया है। रघुवंशके प्रसंगके पद्योंके केवल उत्तरार्धमें, माघके उत्तरार्धके साथ किसीकिसो पद्य के पूर्वार्धमें भी यमक प्रयुक्त है, पर चं० च० के सभी पद्योंके पूवार्ध और उत्तरार्ध दोनोंमें ही। चं० च० के द्वितीय सर्ग ( ११-२३ ) में राजा पद्मनाभके उद्यान में युगपद् सभी ऋतुओं के फल-फूल और पक्षी वर्णित हैं। इस सन्दर्भ में चमत्कारपूर्ण अर्थालङ्कारोंका प्रयोग हुआ है। इसकी एक झलक नैषध ( १, ७५-१०६) में दृष्टिगोचर होती है, जो किरात में नहीं के बराबर है। अतः इस प्रसंगकी रचनामें चं० च० का अपना स्वतन्त्र वैशिष्ट्य है। ९. पर्वत वर्णन-अलंकारशास्त्रके निर्देशानुसार महाकाव्योंके वर्ण्य विषयोंमें पर्वत भी है, पर रघुवंश और नैषधमें इसके वर्णनके लिए स्वतन्त्र सर्ग दृष्टिगोचर नहीं होते। किरात, माघ और चं० च. में क्रमशः हिमालय, रैवतक (गिरनार ) और मणिकूट पर्वतके वर्णनके लिए पाँचवें, चोथे तथा चौदहवें सर्गका स्वतन्त्र उपयोग किया गया है । इस सन्दर्भ में भारविने चौदह और मावने उन्नीस छन्दोंका प्रयोग किया है तो वीरनन्दीने बीस का। जलोद्धतगति, द्रुतविलम्बित, पुष्पिताग्रा, प्रहर्षिणी, प्रमिताक्षरा, मालिनी, वसन्ततिलका, शालिनी और मालिनी, इन नौ छन्दोंका उक्त तीनों महाकवियोंने पर्वत वर्णनके प्रसंगमें समानरूपसे उपयोग किया है। प्रस्तुत सन्दर्भ में भारविने कान्तोत्पीडा और प्रभाका, माघने आर्यागीति, कुरुरीरुता, पथ्या, मत्तमयूर, वंशस्थ, सुमंगला एवं स्रग्विणीका तथा वीरनन्दोने अतिरुचिरा, इन्द्रवज्रा, पथ्वी. मन्दाक्रान्ता और रथोद्धता छन्दोंका एक-दूसरेसे भिन्न प्रयोग किया है। इन तीनों महाकाव्योंके प्रस्तुत प्रसंग के प्रायः सभी पद्य चमत्कारपूर्ण है, पर स्वाभाविकताको दृष्टिसे वीरनन्दी कहीं-कहीं दोनोंसे आगे चले जाते हैं। १०. सूर्यास्त आदिका वर्णन-कालिदासने रघुवंशमें यत्र-तत्र प्रभात आदिका संक्षिप्त वर्णन किया है, पर इसके लिए किसी पूरे सर्गका उपयोग नहीं किया। श्रीहर्षने नैषधके उन्नीसवें सर्गमें प्रभातका वर्णन किया है, जो माघकी तुलनामें फीका है। भारविने किरातके नवमसर्गमें और माधने माघके तीन ( ९-११ ) सर्गों में सूर्यास्तसे प्रभात तकका, जिसमें गोष्ठी, मधुपान, प्रणयालाप तथा संभोग शृंगार भी सम्मिलित है, आकर्षक वर्णन किया है। वीरनन्दीने चं० च० के दशम सर्गमें मधुपानको छोड़कर शेष सभीका चमत्कारपूर्ण वर्णन किया है, जो किरात और माघसे भी अच्छा है। इस प्रसङ्ग के पद्योंका पाठक वीरनन्दीकी श्लाघा किये बिना नहीं रह सकता। सूर्यास्तके प्रसंगमें किरात ( ९,१), माघ ( ९, १) और चं० च० (१०, १) को ध्यानसे पढ़नेपर तीनोंकी चमत्कृतिका उत्तरोत्तर प्रकर्ष ज्ञात होने लगता है। केवल एक ही पद्य नहीं दसवाँ सर्ग पूरा-का-पूरा चमत्कार से भरा हुआ है, चमत्कारका मूलकारण उक्ति वैचित्र्य है। इस दृष्टिसे वीरनन्दी प्रस्तुत अन्य कवियोंसे कहीं अधिक सफल हुए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001837
Book TitleChandraprabhacharitam
Original Sutra AuthorVirnandi
AuthorAmrutlal Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1971
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size14 MB
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