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________________ चन्द्रप्रमचरितम् काव्येतर ग्रन्थ अपने नियत विषयोंका ही प्रतिपादन करते हैं, पर काव्यको यह विशेषता है कि वह प्रसङ्गतः अन्यान्य विषयोंपर भी प्रकाश डालता है। नीरस विषय भी काव्यके सम्पर्कसे सरस बन जाते हैं । इसी दृष्टि से वीरनन्दीने सज्जन-दुर्जनोंका भी आकर्षक वर्णन किया है। ३. द्वीप वर्णन-चं० चं० में कनकप्रभ आदि सभी राजाओं के अन्य वर्णनके साथ उनके द्वीपोंकी भी चर्चा की गयी है, पर रघुवंश आदि चारों महाकाव्योंमें राजाओं के द्वीपोंकी, जिनके वे निवासी रहे, चर्चा नहीं है। चं० च० की भांति उनकी भी कथावस्तु पौराणिक है, अत: पुराणों के आधारपर उनमें भी यह चर्चा दी जा सकती थी। ४. देश-पुर-वर्णन-चं० च० में मङ्गलावती आदि अनेक देशों एवं रत्नसञ्चय आदि पुरोंका सजीव वर्णन द्रष्टव्य है। इनके वर्णनके प्रायः अन्तिम पद्यों में परिसंख्यालङ्कारमें वहाँकी सामाजिक स्थितिपर सुन्दर प्रकाश डाया गया है । जैसे २, १२२, २, १३८-३९ आदि । यह बात रघुवंश आदि चारोंमें नहीं है । ५. नायकवर्णन-महाकाव्यमें उसके नायकका उत्कर्ष दिखलाना कविका मुख्य लक्ष्य होता है। चं० च० में इसकी जितनी पूर्ति की गयी है, रघुवंश आदि चारोंमें दृष्टिगोचर नहीं होती। चं० च० में नायकका क्रमिक उत्कर्ष पिछले सातवें जन्मसे शुरू होता है जो चन्द्रप्रभके भवमें चरम सीमातक पहुँचता है। वाग्भट, असग, वादिराज, हरिचन्द्र और अर्हद्दास आदि जैन महाकवियोंने अपने महाकाव्योंमें इसी ढंगसे नायकोंका उत्कर्ष सिद्ध किया है। कादम्बरीमें इसकी आंशिक झलक मिलती है, पर वह महाकाव्य नहीं है। रघुवंशमें दिलीपसे लेकर अग्निवर्ण पर्यन्त रामकी अनेक पीढ़ियोंका वर्णन है, न कि उनकी भवावली का । माघ ( १, ४२.६८ ) में शिशुपालके दो पिछले भवोंका वर्णन है, पर वह नायक नहीं, प्रतिनायक है । कुमारसम्भव ( १, २१ ) में पार्वतीके पिछले भवका उल्लेख है, किन्तु वह भी नायक नहीं है। निष्कर्ष यह कि नायकका उत्कर्ष दिखलानेवाली भवावली जिस तरह चं च० में वर्णित है, उस तरह रघुवंश आदि चारों में नहीं है। भवावलीके वर्णनसे महाकाव्यमें पुराणत्व आ जायेगा, यह बात सर्वमान्य नहीं हो सकती। किसी भी व्यक्तिके वर्तमान जीवनके उत्कर्षमें उसके पिछले जन्मोंको साधनाका प्रभाव रहता है। वर्तमान जीवनकी भी पिछली साधना उसके भावी उत्कर्षका हेतु होती है-यह स्वाभाविक है । अतएव उ० पु० के आधारपर चं० च० में नायकके पिछले छः भवोंका जो वर्णन किया गया है, वह उस ( चं० च० ) के वैशिष्टयका परिचायक है। ६. नायिका वर्णन-चं० च० में चन्द्रप्रभ की पत्नी के अतिरिक्त उनके पिछले जन्मों से सम्बद्ध सुवर्णमाला, श्रीकान्ता, अजितसेना आदिका भी वर्णन है। इसकी विशेषता यह है कि किसीका भी नखशिख वर्णन नहीं किया गया, सभीके शील आदि गुणोंपर प्रकाश डाला गया है। इसके लिए चं० च० के १, ५५; ३,१६ आदि पद्य द्रष्टव्य है । रघुवंश, माघ और किरात में मुख्य नायिकाओंका नाम मात्रका ही वर्णन है। नैषधमें दमयन्तीका नख-शिख वर्णन है, न कि शील आदिका । अत: चं० च० का नायिका वर्णन प्रस्तुत चारों महाकाव्योंसे विलक्षण है। नायिकाओं की चेष्टाओंका वर्णन-किसी विशिष्ट व्यक्तिके आनेपर उसे देखनेके लिए स्वाभाविक कौतूहल ( वह इच्छा, जिसे रोका न जा सके ) वश नायिकाओं में अनेक चेष्टाएँ उत्पन्न होती हैं। इनका सजीव चित्रण चं० च० (७, ८२-९०), रघुवंश (७, ६-१२), माघ ( १३, ३१-४८) और नैषध ( १६, १२६-१२७ ) में द्रष्टव्य है। किरातमें इस प्रसङ्ग पद्य दृष्टिगोचर नहीं हुए। इस प्रसङ्गका चं० च० (७, ८७ ) का पद्य अत्यन्त सुन्दर है, जिसका भाव है-कोई अन्य नायिका अंगुलियों में अंगुलियाँ मिलाकर दोनों बाहुओं को अपने सिरपर रखकर जमुहाई लेने लगी, जिससे वह ऐसी जान पड़ी मानो सम्राट अजितसेनको देखकर हृदयमें प्रवेश करनेवाले कामदेवके निमित्तसे माङ्गलिक तोरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001837
Book TitleChandraprabhacharitam
Original Sutra AuthorVirnandi
AuthorAmrutlal Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1971
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size14 MB
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