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आप्तमीमांसा [परिच्छेद-१० नय द्रव्याथिकके भेद हैं, और ऋजुसूत्र आदि चार नय पर्यायाथिकके भेद हैं। नैगम आदि चारको अर्थनय भी कहते हैं, क्योंकि इनमें अर्थकी प्रधानता रहती है। और शब्द आदि तीनको शब्दनय कहते हैं । क्योंकि इनमें शब्दकी प्रधानता रहती है।
नैगम नय द्रव्य और पर्यायमें भेद नहीं करता है। इस दृष्टिसे वह कालमें भी भेद नहीं करता है। अतः यह नय जो पर्याय निष्पन्न नहीं हुई है उसका संकल्प करके उसका कथन करता है। जैसे कोई व्यक्ति पकानेके लिए चावल धो रहा है। किसीने उससे पूछा कि क्या कर रहे हो। तब वह कहता है कि ओदन ( भात) पका रहा हूँ। यहाँ अभी ओदन पर्याय निष्पन्न नहीं हुई है। फिर भी उसका कथन . किया गया है। ओदन पर्यायका काल दूसरा है, और चावलका काल दूसरा है। चावल द्रव्य है, ओदन उसकी पर्याय है। यहाँ द्रव्य और पर्यायमें तथा चावलके काल और ओदनके काल में अभेद मान लिया गया है। फिर भी नैगम नयकी दृष्टिसे उक्त कथन ठीक है।
संग्रह नय सजातीय समस्त पदार्थों का संग्रह करके उनका ग्रहण करता है। द्रव्यके कहनेसे समस्त द्रव्योंका ग्रहण हो जाता है, घटके कहनेसे समस्त घटोंका ग्रहण हो जाता है। व्यवहार नय संग्रह नयसे गृहीत अर्थोंका यथाविधि भेद पूर्वक व्यवहार करता है। जैसे द्रव्यके दो भेद हैं - जीव द्रव्य और अजीव द्रव्य । जीव द्रव्यके भी दो भेद हैं-मुक्त जीव और संसारी जीव । अजीव द्रव्यके पाँच भेद हैं-पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । स्वर्णघट, रजतघट, मृत्तिकाघट आदिके भेदसे घटके अनेक भेद हैं। इस प्रकारसे भेद पूर्वक व्यवहार करना व्यवहार नय है ।
भूत और भविष्यत् कालकी अपेक्षा न करके केवल वर्तमान समयवर्ती एक पर्यायको ग्रहण करने वाले नयको ऋजुसूत्र नय कहते हैं। पर्याय एक क्षणवर्ती होती है। ऋजुसूत्र नय वर्तमान पर्यायको ही ग्रहण करता है, अतीत और अनागत पर्यायको ग्रहण नहीं करता। यथार्थमें अतीतको विनष्ट हो जानेसे तथा अनागतको अनुत्पन्न होनेसे उनमें पर्याय व्यवहार हो भी नहीं सकता । इसीसे ऋजुसूत्र नयका विषय वर्तमान पर्याय मात्र बतलाया गया है। इस नयमें द्रव्य सर्वथा अविवक्षित रहता है।
शब्द नय शब्दोंमें लिङ्ग, संख्या, कारक , काल आदिके व्यभिचार
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