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________________ दशम परिच्छेद अज्ञानसे वन्ध होता है, और अल्प ज्ञानसे मोक्ष होता है, इस प्रकारके एकान्तका निराकरण करनेके लिए आचार्य कहते हैं अज्ञानाच्चेद्धृ वो बन्धो ज्ञयानन्त्यान्न केवली । ज्ञानस्तोकाद्विमोक्षश्चेदज्ञानाबहुतोऽन्यथा ॥९६।। यदि अज्ञानसे नियमसे बन्ध होता है, तो ज्ञेयके अनन्त होनेसे कोई भी केवली नहीं हो सकता है। और यदि अल्प ज्ञानसे मोक्षकी प्राप्ति हो, तो बहुत अज्ञानसे बन्धकी प्राप्ति भी होगी। __यहाँ सांख्य मतमें माने गये बन्ध, मोक्ष तथा उनके कारणोंके विषयमें विचार किया गया है। सांख्य मानते हैं कि प्रकृति और पुरुषमें भेदविज्ञान न होनेसे अर्थात् अज्ञानसे बन्ध होता है। ज्ञान पूरुषका धर्म या गुण नहीं है, किन्तु प्रकृतिका धर्म है। मोक्ष में ज्ञानका किंचिन्मात्र भी सद्भाव नहीं रहता है। वहाँ पुरुष केवल चैतन्यमात्र स्वरूपमें अवस्थित रहता है । जब मोक्षमें प्रकृति और पुरुषका संसर्ग नहीं है, तब प्रकृतिके संसर्गके अभावमें प्रकृतिका धर्म ज्ञान मोक्षमें कैसे रह सकता है। ऐसा सांख्यका मत है। यहाँ सबसे पहले अज्ञान शब्द पर विचार किया जायगा। अज्ञान अभाववाचक शब्द है। अभाव दो प्रकारका होता है-एक प्रसज्यरूप और दूसरा पर्युदासरूप । उनमेंसे प्रसज्यरूप अभाव सदा अभावरूप ही रहता है, किन्तु पर्युदासरूप अभाव भावान्तरस्वरूप होता है। प्रसज्यपक्षमें ज्ञानके अभावका नाम अज्ञान है। और पर्युदासपक्षमें मिथ्याज्ञानका नाम अज्ञान है। यदि ज्ञानके अभावसे बन्ध होता है, तो कोई भी पुरुष केवली नहीं हो सकता है। क्योंकि ज्ञेय अनन्त हैं। उन अनन्त ज्ञेयोंका ज्ञान संभव न होनेसे सदा बन्ध होता रहेगा। केवलज्ञानकी उत्पत्तिके पहले सम्पूर्ण पदार्थों का ज्ञान सम्भव नहीं है। क्योंकि इन्द्रिय प्रत्यक्षसे अतीन्द्रिय पदार्थोंका ज्ञान नही हो सकता है। अनुमान भी अत्यन्त परोक्ष अर्थको नहीं जानता है। और आगमसे भी पदार्थोंका सामान्यरूपसे ही ज्ञान होता है । इस प्रकार अनन्त अर्थोंका ज्ञान किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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