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आप्तमीमांसा
[ परिच्छेद-६
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युक्ति पूर्वक विचार करने इन लोगोंका मत असंगत ही प्रतीत होता है । यदि प्रत्यक्षसे किसी उपेय तत्त्वका ज्ञान न हो तो अनुमानसे भी किसी वस्तुका ज्ञान संभव नहीं होगा । प्रत्यक्षसे धर्मीका साधनका और उदाहरणका ज्ञान न होने पर किसी वस्तुकी सिद्धिके लिये अनुमानकी प्रवृत्ति कैसे होगी । एक अनुमानमें धर्मी आदिका ज्ञान अनुमानन्तरसे मानने पर अनवस्था दोषका प्रसंग अनिवार्य है । अतः धर्मी आदिके साक्षात्कारके विना स्वार्थानुमानकी प्रवृत्ति असंभव है । और ऐसी स्थितिमें परार्थानुमानरूप शास्त्रोपदेशका भी कोई प्रयोजन शेष नहीं रहता है । इस कारणसे अभ्यस्त विषयमें प्रत्यक्षसे ज्ञान मानना आवश्यक है । यदि ऐसा न हो तो शब्द में सत्त्व हेतुसे अनित्यत्वकी सिद्धि करते समय धर्मी ( शब्द ) और लिङ्ग (सत्त्व ) का ज्ञान न होनेसे स्वार्थानुमान के अभाव में परार्थानुमानरूप शास्त्रोपदेश भी नहीं बन सकेगा ।
कुछ लोगों का मत है कि आगमसे ही सब पदार्थोंकी सिद्धि होती है । आगमके विना प्रत्यक्ष पदार्थ में भी यथार्थ निर्णय नहीं हो सकता है । वैद्य रोगीको प्रत्यक्ष देखकर और नाड़ी परीक्षा द्वारा रोगका अनुमान करके भी वैद्यकशास्त्रका सहारा लेता है । जिस अनुमानका पक्ष आगमसे बाधित होता है वह अनुमान साध्यका साधक नहीं होता है । ब्रह्मकी सिद्धि आगमसे ही होती है । प्रत्यक्ष और अनुमानकी प्रवृत्ति अविद्यासे प्रतिभासित पर्यायोंमें ही होती है । शुद्ध सन्मात्र तत्त्व तो आगमके द्वारा ही जाना जाता है । इस प्रकार इन लोगोंके मतसे आगम ही एक सम्यक् प्रमाण है, और आगमके द्वारा सिद्ध वस्तु ही ठीक है ।
उक्त मत समीचीन नहीं है । यदि आगम ही एक मात्र प्रमाण हो तो जितने आगम हैं उन सबको प्रमाण मानना पड़ेगा । किन्तु हम देखते हैं कि जितने आगम हैं उन सबमें परस्पर विरोधी तत्त्वोंका प्रतिपादन किया गया है । इसलिये आगममात्रको प्रमाण माननेवालोंके अनुसार परस्पर विरुद्धार्थप्रतिपादक सब आगम प्रमाण हो जायेंगे । और ऐसा होने पर परस्परमें विरुद्ध अर्थोंकी सिद्धि भी हो जायगी । जिस आगममें सम्यक् उपदेश हो वह प्रमाण है, और इससे भिन्न आगम अप्रमाण है, ऐसा निर्णय युक्तिको छोड़कर कैसे किया जा सकता है । अतः केवल आगमको प्रमाण माननेवालों को भी युक्ति तो मानना ही पड़ेगी । युक्तिसहित जो आगम है वह प्रमाण है, और युक्तिरहित आगम अप्रमाण है, इस प्रकारकी व्यवस्थाके अभाव में सब आगमों में प्रमाणताका निराकरण नहीं किया जा
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