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कारिका- ७१-७२
तत्त्वदीपिका
२४५
द्रव्य और पर्यायमें कथंचित् ऐक्य (अभेद) है, क्योंकि उन दोनों में अव्यतिरेक पाया जाता है । द्रव्य और पर्याय कथंचित् नाना भी हैं, क्योंकि द्रव्य और पर्याय में परिणामका भेद है, शक्तिमान् और शक्तिभावका भेद है, संज्ञाका भेद है, संख्याका भेद है, स्वलक्षणका भेद है, और प्रयोजनका भेद है | आदि शब्दसे कालादिके भेदका भी ग्रहण किया गया है ।
उक्त कारिकामें द्रव्य शब्दके द्वारा गुणी, सामान्य और उपादान कारणका ग्रहण किया गया है । और पर्याय शब्दके द्वारा गुण, विशेष और कार्य द्रव्यका ग्रहण किया गया है, 'अव्यतिरेक' शब्द अशक्यविवेचनका वाचक है । अर्थात् द्रव्य और पर्यायको एक दूसरे से पृथक् नहीं किया जा सकता है । द्रव्य और पर्याय कथंचित् अभित्र हैं, क्योंकि द्रव्यसे पर्यायको पृथक् नहीं किया जा सकता है, और पर्यायसे द्रव्यको पृथक नहीं किया जा सकता है । यद्यपि द्रव्य और पर्यायका प्रतिभास भिन्न-भिन्न होता है, किन्तु प्रतिभासभेद होनेपर भी जिनको पृथक् नहीं किया जा सकता है, वे एक ही हैं । ज्ञानाद्वैतवादियोंके यहाँ एक ही ज्ञान वेद्य और वेदकरूप होता है । वेद्य और वेदकरूपसे प्रतिभास भेद होनेपर भी दो ज्ञान नहीं माने गये । मेचकज्ञान ( चित्रज्ञान ) में नील, पीत आदि अनेक आकार होनेपर भी मेचकज्ञान एक ही रहता है । इसी प्रकार द्रव्य और पर्याय भी एक ही वस्तु हैं, दो नहीं । ब्रह्माद्वैतवादी द्रव्यको ही वास्तविक मानते हैं, और बौद्ध पर्यायको ही वास्तविक मानते हैं । उनका ऐसा मानना ठीक नहीं है, क्योंकि दोनोंमें से एकके अभाव में अर्थक्रिया नहीं हो सकती है। पर्यायरहित द्रव्य और द्रव्यरहित पर्याय अर्थक्रिया करनेमें समर्थ नहीं हो सकते हैं । अतः दोनोंको वास्तविक मानना आवश्यक है । द्रव्य और पर्याय दोनोंके वास्तविक माननेपर प्रतिभासभेदके कारण दोनोंको सर्वथा भिन्न-भिन्न मानना ठीक नहीं है । क्योंकि भिन्न सामग्री जन्य होनेके कारण प्रतिभासभेद अर्थभेदका नियामक नहीं हो सकता है । एक ही वृक्षमें दूर देशमें स्थित पुरुषको अस्पष्ट प्रतिभास और निकट देशमें स्थित पुरुषको स्पष्ट प्रतिभास होता है । एक ही घटमें चक्षुके द्वारा रूपका प्रतिभास और घ्राणके द्वारा गन्धका प्रतिभास होता है । यहाँ प्रतिभासभेद होनेपर भी न तो वृक्ष अनेक है, और न घट | यही बात द्रव्य और पर्यायके विषय में है । द्रव्य और पर्यायको एक माननेमें विरोध आदि दोषोंकी कल्पना वही कर सकता है, जिसे अनेकान्त शासनका बोध नहीं है । केवल एक द्रव्य ही है, अथवा अनेक पर्यायें ही हैं, इस प्रकार एकत्व और अनेकत्व पक्षके आग्रहमें न
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