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________________ २३५ कारिका-६४ ] तत्त्वदीपिका अत्यन्त भेद होने पर भी उनमें देश-काल भेद नहीं है, उसी प्रकार अवयव-अवयवी आदिमें अत्यन्त भेद मानने पर भी देश-काल भेद नहीं है। वैशेषिक द्वारा उक्त कथन आत्मा और आकाशको व्यापक मानकर किया गया है। वैशेषिक मतके अनुसार यद्यपि आत्मा और आकाश अत्यन्त भिन्न हैं, किन्तु दोनोंके व्यापक और नित्य होनेसे दोनोंका देश और काल एक ही है । उक्त कथन समीचीन नहीं है। क्योंकि आत्मा, और आकाश भी सर्वथा भिन्न नहीं हैं किन्तु उनमें भी सत्त्व, द्रव्यत्व आदिकी अपेक्षासे अभिन्नता है। यदि वैशेषिक भी आत्मा, और आकाशका सर्व मूर्तिमान् द्रव्योंके साथ संयोग होनेके कारण आत्मा और आकाशमें अभेद मानकर उनमें देश-काल भेद नहीं मानना चाहता है, तो अवयव-अवयवी आदिमें भी इसी प्रकार अभेद मानना चाहिये । किन्तु स्वमतका त्याग करके ही अभेद पक्ष स्वीकार किया जा सकता है । यदि कोई यह कहे कि रूप, रस आदिमें अत्यन्त भेद होने पर भी देश-काल भेद नहीं है, तो ऐसा कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि रूप, रस आदि भी न तो अपने आश्रयसे अत्यन्त भिन्न हैं, और न परस्परमें अत्यन्त भिन्न हैं। अतः यदि नैयायिक-वैशेषिक अवयवअवयवी आदिको सर्वथा पृथक् मानते हैं, तो उनमें देश-काल भेद भी मानना चाहिये। और यदि उनमें देश-काल भेद नहीं है, तो सर्बथा भेद भी नहीं हो सकता है। यथार्थ बात तो यह है कि अवयव-अवयवी, गुण-गुणी आदि न तो सर्वथा भिन्न हैं, और न सर्वथा अभिन्न, किन्तु कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न हैं। अर्थात् उनमें तादात्म्य सम्बन्ध है। उक्त मतमें अन्य दोषोंको बतलानेके लिए आचार्य कहते हैंआश्रयायिभावान्न स्वातन्त्र्यं समवायिनाम् । इत्ययुक्तः स सम्बन्धो न युक्तः समवायिभिः ॥६४॥ यदि कहा जाय कि समवायियों में आश्रय-आश्रयीभाव होने से स्वातन्त्र्य न होनेके कारण देश-काल भेद नहीं है, तो ऐसा कहना ठीक नहीं है। क्योंकि जो समवायियोंके साथ असम्बद्ध है वह सम्बन्ध नहीं हो सकता है। नैयायिक-वैशेषिक अवयव-अवयवी, गुण-गुणी, कार्य-कारण, मामान्यसामान्यवान् और विशेष-विशेषवान्में समवाय सम्बन्ध मानते हैं । समवाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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