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२३४ आप्तमीमांसा
[परिच्छेद-४ इसी प्रकार अवयव-अवयवी आदिमें भी तादात्म्य होनेसे उक्त प्रकारका विकल्प नहीं किया जा सकता है।
नैयायिक-वैशेषिक एक ही धर्मको सामान्य भी मानते हैं, और विशेष भी मानते हैं। द्रव्यत्व सामान्य भी है, और विशेष भी है। द्रव्यत्व सब द्रव्योंमें रहनेके कारण सामान्य है, तथा गुण और कर्ममें न रहनेके कारण विशेष है। वे द्रव्यत्व, गुणत्व, आदिको अपर सामान्य कहते हैं। इसका तात्पर्य यह हुआ कि द्रव्यत्वमें दो अंश पाये जाते हैं, एक सामान्य और दूसरा विशेष । द्रव्यत्व न तो सर्वथा सामान्यरूप है, और न सर्वथा विशेषरूप। द्रव्यत्वके इन दोनों अंशोंमें तादात्म्य ही मानना चाहिये । न तो उनका परस्परमें समवाय है, और न द्रव्यत्वके साथ समवाय है। द्रव्यत्वके साथ भी उनका तादात्म्य ही है। इस प्रकार अवयव-अवयवो, गुण-गुणी आदिमें भी तादात्म्य होनेसे वे एक दूसरेसे सर्वथा भिन्न नहीं हैं, किन्तु कथंचित् एक हैं। भेद पक्षमें अन्य दोषोंको बतलानेके लिये आचार्य कहते हैं
देशकालविशेषेऽपि स्यावृत्तिर्युतसिद्धवत् ।
समानदेशता न स्यात् मूर्तकारणकार्ययोः॥६३॥ - यदि अवयव-अवयवी, कार्य-कारण आदि एक दूसरेसे सर्वथा पृथक् हैं, तो पृथसिद्ध पदार्थों की तरह भिन्न देश और भिन्न कालमें उनकी वृत्ति ( स्थिति ) मानना पड़ेगी। क्योंकि मूर्त कारण और कार्य में समानदेशता नहीं बन सकती है।
यदि अवयव-अवयवी आदिमें अत्यन्त भेद है, तो उनमें देशभेद, और कालभेद भी मानना होगा। अर्थात् अवयवी अन्य देशमें रहेगा, और अवयव किसी दूसरे देशमें रहेगा, अवयवका काल दूसरा होगा, और अवयवीका काल दूसरा होगा । घट और पट युतसिद्ध पदार्थ हैं । अतः उनका देश और काल भिन्न-भिन्न है । इसी प्रकार अवयव-अवयवी, कार्य-कारण आदिका भी देश और काल भिन्न-भिन्न होगा। कार्यकारण आदिका काल एक होने पर भी उनका एक देश तो किसी भी प्रकार संभव नहीं है। क्योंकि जो मूर्त पदार्थ हैं, वे एक देशमें नहीं रह सकते हैं। घट और पट कभी भी एक देशमें नहीं पाये जाते हैं। घटका देश दूसरा है, और पटका देश दूसरा है। इसी प्रकार अवयवअवयवी आदिके मूर्त होनेसे एक देशमें इनकी स्थिति असंभव है।
वैशेषिकका कहना है कि जिस प्रकार आत्मा और आकाशमें
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