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कारिका-३३.३४] तत्त्वदीपिका
१९१ क्षादि प्रमाणों से विरोध आता है। प्रत्यक्ष से जिस वस्तु की निर्बाधरूप से जैसी प्रतीति होती हो उसको वैसा ही मानना चाहिए। प्रत्यक्ष से प्रतीत होता है कि पदार्थ एक होकर के भी अनेकरूप है और अनेक पदार्थ भी एकरूप हैं । इसलिए पदार्थ कथंचित् एकरूप है और कथंचित् अनेकरूप। अनुमान प्रमाण से भी परस्पर निरपेक्ष पथक्त्व और एकत्व में अवस्तुत्व की सिद्धि होती है । यथा- सर्वथा एकत्व नहीं है, पृथक्त्व निरपेक्ष होने से, आकाशपुष्प के समान । इसी प्रकार सर्वथा पृथक्त्व नहीं है, एकत्व निरपेक्ष होने से, खरविषाण के समान । अतः पृथक्त्व और एकत्व को निरपेक्ष न मानकर सापेक्ष ही मानना चाहिए। एकत्व और पुथक्त्व को सापेक्ष मानने पर एक ही वस्तु उभयात्मक और अर्थक्रियाकारी सिद्ध होती है। धूम आदि हेतु एक होकर भी अपने धर्मोकी अपेक्षासे अनेक भी होता है । हेतु में पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्व और विपक्षासत्त्व ये तीन परस्पर सापेक्ष धर्म पाये जाते हैं । इन धर्मों के कारण हेतु कथंचित् अनेक रूप भी है। चित्रज्ञान एक होने पर भी आकारों की अपेक्षा से अनेकरूप भी होता है। घट एक होकर भी परमाणुओं अथवा कपालों की अपेक्षा से अनेकरूप है। प्रधान एक होकर के भी सत्त्व, रज और तम इन तीन गणों के कारण अनेकरूप होता है। इस प्रकार अनेक पदार्थ एकानेकरूप देखे जाते हैं । अतः यह सिद्ध होता है कि कोई भी पदार्थ न सर्वथा एकरूप है, और न सर्वथा अनेकरूप । एकत्व और अनेकत्व ये परस्पर सापेक्ष धर्म हैं। और जिसवस्तु में परस्पर सापेक्ष दोनों धर्म पाये जाते हैं वही वस्तु अर्थक्रिया करती है । ___ एक ही वस्तुमें एकत्व और पृथक्त्वको सिद्ध करनेके लिए आचार्य कहते हैं
सत्सामान्यात्तु सर्वैक्यं पृथग्द्रव्यादिभेदतः ।
भेदाभेदविवक्षायामसाधारणहेतुवत् ॥३४॥ सत्ता सामान्यकी अपेक्षासे सब पदार्थ एक हैं, और द्रव्य आदिके भेद से अनेक हैं। जैसे असाधारण हेतु भेद की विवक्षा से अनेक और अभेद की विवक्षा से एक होता है।
सत्ता के दो भेद हैं-एक सामान्य सत्ता और दूसरी विशेष सत्ता । सामान्य सत्ता वह है जिसके कारण सब पदार्थों में सत्, सत् ऐसा प्रत्यय होता है। सत्ता सामान्य सब पदार्थों में समानरूप से रहता है। विशेष सत्ता सब पदार्थों की पृथक् पृथक् है। घट की सत्ता से पट की सत्ता
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