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________________ १९२ आप्तमीमांसा [परिच्छेद-२ भिन्न है, और द्रव्य की सत्ता से गुण की सत्ता भिन्न है, यही विशेष सत्ता है। सामान्य सत्ता एक है, और विशेष सत्ता अनेक है। सामान्य सत्ता की दृष्टि से सब पदार्थ एक हैं। घट और पट में तथा द्रव्य और गुण में कोई भेद नहीं है, क्योंकि सब समान रूप से सत् हैं । किन्तु जब विशेष सत्ता की दृष्टि से विचार किया जाता है, तो सब पदार्थ पृथक् पृथक् ही प्रतीत होते हैं । द्रव्य, गण आदि के भेद से अनेक तत्त्वों का सद्भाव पाया जाता है । एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से भिन्न तो है ही, किन्तु एक द्रव्य के जितने अवान्तर भेद हैं. वे भी सब भिन्न-भिन्न हैं। अतः सामान्य सत्ता की दृष्टि से सब पदार्थ एक हैं, और विशेष सत्ता की दृष्टि से सब पदार्थ पृथक्-पृथक हैं । एक ही वस्तु अनेकरूप भी होती है, इस बात की सिद्धि के लिए हेतु का दृष्टान्त दिया गया । हेतु कारक को भी कहते हैं, और ज्ञापक को भी। धूम वह्नि का ज्ञापक (ज्ञान कराने वाला) हेतु (साधन) है, और मृत्पिण्ड घट का कारक (उत्पन्न करने वाला) हेतु (कारण) है । भेदकी विवक्षा होने पर धम पक्षधर्मत्व सपक्षसत्व और विपक्षासत्वके भेद से तीन रूप हो जाता है । और अभेदको विवक्षासे धूम एक ही है । भेदकी विवक्षा होने पर मृत्पिण्ड परमाणु, द्वयणुक, त्र्यणुक आदिकी अपेक्षासे अनेक रूप हो जाता है। और अभेदकी विवक्षासे मृत्पिण्डके एक होने में कोई सन्देह नहीं है। ___ बौद्धोंके अनुसार सब पदार्थ अत्यन्त पृथक् हैं, उनमें किसी भी दृष्टिसे एकत्व संभव नहीं है। उनका कहना हैं कि यद्यपि पदार्थोंमें समान परिणमन पाया जाता है, किन्तु उनमें स्वभावसार्य नहीं हो सकता है । एक पदार्थका जो स्वभाव है, वह त्रिकालमें भी दूसरे पदार्थका नहीं हो सकता है। सब मनुष्योंमें जो एकसी प्रतीत होती है, उसका कारण अतत्कार्यकारणसे व्यावृत्ति है । अर्थात् सब मनुष्य अमनुष्योंके कार्य नहीं करते हैं, और अमनुष्योंके कारणोंसे उत्पन्न नहीं हुए हैं, इसलिए वे सब समान प्रतीत होते हैं । यथार्थमें एक मनुष्यका स्वभाव दूसरे मनुष्यके स्वभावसे सर्वथा भिन्न है।। उक्तमत समीचीन नहीं है। जिस प्रकार एक मतुष्यमें कोई भेद नहीं हैं, क्योंकि उसका एक स्वभाव पाया जाता है, उसी प्रकार सब मनुष्योंमें भी एक स्वभाव ( मनुष्यत्व ) के पाये जानेके कारण सब मनुष्य भी कथंचित् एक हैं। सब पदार्थों में भी एक स्वभाव ( सत्ता सामान्य ) पाया जाता है, इसलिए सब पदार्थ भी कथंचित् एक हैं। सत्ताको अपेक्षासे एक पदार्थसे दूसरे पदार्थ में कोई भेद नहीं है। यदि भेद हो तो इसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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