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कारिका - १० ]
तत्त्वदीपिका
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की उत्पत्ति तथा नाश मानता है । किन्तु प्रागभावके न माननेसे कार्योंकी उत्पत्ति न होनेका दूषण और प्रध्वंसाभावके न मानने से कार्योंके नाश न होने का दूषण चार्वाक मतमें आता ही है । चार्वाकके अनुसार पृथिवी आदि कार्यद्रव्य न तो अनादि हैं और न अनन्त हैं ।
सांख्य यदि प्रागभाव नहीं मानते हैं तो घट आदि कार्यद्रव्य अनादि मानना होंगे । सांख्य मतके अनुसार न किसी पदार्थ की उत्पति होती है, और न विनाश, किन्तु पदार्थों का आविर्भाव और तिरोभाव होता है । अतः सांख्य कह सकता है कि जब हमारे यहाँ कोई कार्यद्रव्य ही नहीं हैं, तो उनको अनादि होनेका दोष देने वाला केवल अपना अज्ञान ही व्यक्त करता है । किन्तु जब हम विचार करते हैं कि घट आदि कार्यद्रव्य हैं या नहीं, तो प्रतीत होता है कि सांख्य द्वारा घट आदिको कार्य न माननेमें अज्ञानके अतिरिक्त और कोई कारण नहीं है । हम देखते हैं कि कुंभकार जब चक्रपर मिट्टीका पिण्ड रखकर चक्रको चलाता है तभी घटकी उत्पत्ति होती है । यदि घट पहिलेसे बना हुआ रक्खा हो तो कुंभकारको परिश्रम ही क्यों करना पड़े । अतः यह मानना अनिवार्य है कि घट आदि कार्यद्रव्य हैं ।
इसी प्रकार मीमांसक यदि शब्दका प्रागभाव नहीं मानता है, तो शब्दको अनादि मानना पड़ेगा । मीमांसकके मतानुसार शब्द नित्य है, और उसकी उत्पत्ति नहीं होती है । मीमांसककी ऐसी कल्पना भी अज्ञानके कारण ही है । शब्द यदि नित्य हो, और उत्पन्न न होता हो तो शब्द - की उत्पत्तिके लिए पुरुष द्वारा जो तालु आदिका व्यापार देखा जाता है उसकी क्या आवश्यकता है । हम देखते हैं कि पुरुष जब तालु आदिका व्यापार करता है तभी शब्दकी उपलब्धि होती है, और तालु आदिके व्यापारके अभावमें शब्दकी उपलब्धि कभी नहीं होती । अत: शब्दको भी घटकी तरह कार्यद्रव्य मानना आवश्यक है |
वस्तुके विषयमें दो प्रकारकी बातें देखी जाती हैं - एक उत्पत्ति और दूसरी अभिव्यक्ति । अविद्यमान वस्तुकी कारणोंके द्वारा उत्पत्ति होती है । और जो वस्तु पहलेसे विद्यमान तो है, किन्तु किसी आवरण से ढकी होनेके कारण प्रकट नहीं है, उस वस्तु की अन्य किसी कारण द्वारा अभिव्यक्ति होती है । कुम्भकारने जो घट बनाया उस घट की उत्पत्ति हुई । रात्रिमें किसी कक्षमें घट रक्खा है, किन्तु अन्धकारके कारण वह घट दिख नहीं रहा है, वही घट दीपकके प्रकाशमें दिखने लगता है । यहाँ दीपक द्वारा विद्यमान घटकी अभिव्यक्ति हुई ।
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