________________
कारिका-३]
तत्त्वदीपिका ज्ञान होता है वही अनुमान है। अनुमानके दो भेद हैं—स्वार्थानुमान और परार्थानुमान । अनुमान हेतुसे उत्पन्न होता है । हेतु कुल तीन हैं-स्वभाव हेतु, कार्य हेतु और अनुपलब्धि हेतु । प्रत्येक हेतु त्रिरूप (तीन रूप वाला) होता है । तीन रूप ये हैं--पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्त्व और विपक्षव्यावृत्ति । इनमें दो रूप-अवाधितविषयत्व और असत्प्रतिपक्षत्वको मिलाकर नैयायिक हेतुके पाँच रूप मानते हैं। नैयायिक अनुमानके पाँच अवयव मानते हैं-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन । लेकिन बौद्ध अनुमानके दो ही अवयव मानते हैं हेतु और दृष्टान्त ।
प्रमाणफलव्यवस्था बौद्धदर्शनमें वही ज्ञान प्रमाण है और वही ज्ञान प्रमाणफल भी है। प्रत्येक ज्ञानमें दो बातें पायी जाती हैं-अर्थाकारता और अर्थाधिगम । प्रत्येक ज्ञान अर्थसे उत्पन्न होता है तथा अर्थाकार होता है। जो ज्ञान पुस्तकसे उत्पन्न हुआ है वह पुस्तकाकार है तथा पुस्तकके बोधरूप है। अतः उसमें जो पुस्तकाकारता है वह प्रमाण है, और जो पुस्तकका बोध है वह प्रमाणफल है। इसप्रकार एक ही ज्ञानमें प्रमाण और फलकी व्यवस्था की जाती है।
तत्त्वव्यवस्था बौद्धदर्शन दो तत्त्वोंको मानता है—एक स्वलक्षण और दूसरा सामान्यलक्षण । इनमेंसे स्वलक्षण प्रत्यक्षका विषय है ओर सामान्यलक्षण अनुमानका विषय है।
स्वलक्षण सजातीय और विजातीय परमाणुओंसे असम्बद्ध और प्रतिक्षण विनाशशील जो निरंश परमाणु हैं उन्हीं का नाम स्वलक्षण है । अथवा देश, काल १. तदेव च प्रत्यक्षं ज्ञानं प्रमाणफलमर्थप्रतीतिरूपत्वात् -न्या० बि० पृ० १८ । अर्थसारूप्यमस्य प्रमाणम्।।
-न्या० बि० पृ० १८ । इह नीलादेरर्थात् ज्ञानं द्विरूपमुपपद्यते नीलाकार नीलबोधस्वरूपं च । तत्रानीलाकारव्यावृत्या नीलाकारं ज्ञानं प्रमाणम् । अनीलबोधव्यावृत्या नोलबोधस्वरूपं प्रमितिः । सैव फलम् ।
-तर्कभाषा पृ० ११ २. तस्य विषयः स्वलक्षणम् ।
-न्या० बि० पृ० १५ । ३. सोऽनुमानस्य विषयः ।
-न्या० बि० पृ० १८ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org