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कारिका-३]
तत्त्वदीपिका वह प्रयोजन कहलाता है।
दृष्टान्त-लौकिक और परीक्षक पुरुषोंको जिस अर्थमें समान बुद्धि हो वह दृष्टान्त कहलाता है । जैसे पर्वतमें धूम हेतुसे वह्निको सिद्ध करने में भोजनशाला दृष्टान्त है।
सिद्धान्त-सिद्धान्तके चार भेद हैं—सर्वतंत्रसिद्धान्त, प्रतितंत्रसिद्धान्त, अधिकरणसिद्धान्त और अभ्युपगमसिद्धान्त । . सब शास्त्रोंमें जो बात बिना किसी विरोधके पायी जाती है वह सर्वतंत्रसिद्धान्त है। जैसे घ्राण आदि इन्द्रियाँ होती हैं, इस बातको प्रत्येक तंत्र (शास्त्र) मानता है।
जो बात स्वमतमें सिद्ध हो तथा परमतमें असिद्ध हो उसे प्रतितंत्रसिद्धान्त कहते हैं । जैसे शब्दोंमें नित्यता मीमांसक मतमें ही सिद्ध है । ___ जहाँ किसी अर्थके सिद्ध होनेपर अन्य अर्थ स्वतः सिद्ध हो जाता है वह अधिकरणसिद्धान्त है । जैसे आत्मा शरीर और इन्द्रियोंसे भिन्न है ऐसा सिद्ध होनेपर यह स्वतः सिद्ध हो जाता है कि इन्द्रियाँ नाना हैं, वे नियत विषय हैं आदि ।
अपरीक्षित अर्थको मानकर उसकी विशेष परीक्षा करना अभ्युपगमसिद्धान्त है । अर्थात् जो बात सूत्र में नहीं कही गयी है उसको मान लेना, जैसे मनको इन्द्रिय मानना । ____ अवयव-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन ये अनुमानके पाँच अवयव हैं।
तर्क-अविज्ञात अर्थमें सयुक्तिक कारणोंके द्वारा तत्त्वज्ञानके लिए १. यमर्थमधिकृत्य प्रवर्तते तत्प्रयोजनम् ।
न्या० सू० १।१।२४ । २. लौकिकपरीक्षकाणां यस्मिन्नर्थे बुद्धिसाम्यं स दृष्टान्तः।।
-न्या० सू० १।१।२५ । ३. सर्वतंत्राविरुद्धस्तंत्रेऽधिकृतोऽर्थः सर्वतंत्रसिद्धान्तः । --न्या० सू० १३१।२८ । ४. समानतंत्रसिद्धः परतंत्रासिद्धः प्रतितंत्रसिद्धान्तः । - न्या० सू० १११।२९ । ५. यत्सिद्धावन्यप्रकरण सिद्धिःसोऽधिकरणसिद्धान्तः । -न्या० सू० १।१।३०। ६. अपरीक्षिताभ्युपगमात्तद्विशेषपरीक्षणमभ्युपगमसिद्धान्तः ।
--न्या० सू० १।१।३१। ७. प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनयनिगमनान्यवयवाः ।
-न्या० सू० १॥१॥३२ ।
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