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आप्तमीमांसा
जो विचारविमर्श किया जाता है वह तर्क है' ।
निर्णय- विचारपूर्वक पक्ष और प्रतिपक्षके द्वारा अर्थका निर्णय करना निर्णय हैं ।
वाद - प्रमाण और तर्कसे जहाँ साधन और दूषण दिखाया जाता है, जो सिद्धान्तसे अविरोधी होता है और जो पाँच अवयवोंसे सहित होता है, ऐसे पक्ष और प्रतिपक्षका स्वीकार करना वाद है ।
जल्प
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- जल्पका लक्षण वादके लक्षणके समान ही है । जल्पमें इतनी विशेषता है कि यहाँ प्रमाण और तर्कके सिवाय छल जाति और निग्रहस्थानोंके द्वारा भी पक्षकी सिद्धि की जाती है और प्रतिपक्षमें दूषण दिखाया जाता है ।
वितण्डा - वितण्डा में प्रतिपक्ष नहीं होता है, केवल पक्ष ही होता है । शेष सब बातें जल्पके समान हैं ।
हेत्वाभास हेत्वाभासके पाँच भेद हैं- अनैकान्तिक, विरुद्ध, प्रकरणसम, साध्यसम और कालातीत ।
[ परिच्छेद- १
छल- अर्थ में विकल्प उत्पन्न करके किसीके वचनोंका विघात करना छल है । छलके तीन भेद हैं- वाक्छल, सामान्य छल और उपचार छल । सामान्य रूप से किसी अर्थ के कहनेपर वक्ता के अभिप्रायसे भिन्न अर्थकी कल्पना करना वाक्छल है । जैसे किसीने कहा 'नव कम्बलोऽयम्' । कहनेवालेका यह तात्पर्य है कि इस व्यक्ति के पास नूतन कम्बल है । लेकिन सुननेवाला दूसरा व्यक्ति छल द्वारा कहता है कि इसके पास नौ कम्बल कैसे हो सकते हैं ? यही वाक्छल है । सम्भव अर्थ में अतिसामान्यके सम्बन्धसे असंभव अर्थकी कल्पना करना सामान्य छल है । जैसे यह ब्राह्मण विद्याचरण से सम्पन्न है । कहनेवालेका तात्पर्य केवल
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१. अविज्ञाततत्त्वेऽर्थे कारणोपपत्तितस्तत्त्वज्ञानार्थमूहस्तर्कः ।
-न्या० सू० १११।३० । -न्या० सू० १११।४१ ।
२. विमृश्य पक्षप्रतिपक्षाभ्यामवधारणं निर्णयः ।
३. प्रमाणतर्कसाधनोपालंभः सिद्धान्ताविरुद्धः पञ्चावयवोपपन्नः पक्षप्रतिपक्ष परि
f ग्रहो वादः ।
४. यथोक्तोपपन्नश्छलजातिनिग्रहस्थानसाधनोपालंभो जल्पः ।
५. स प्रतिपक्ष स्थापनाहीनो वितण्डा ।
६. वचनविधातोऽर्थविकल्पोपपरया छलम् ।
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- न्या० सू० ११२।१ ।
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- न्या० सू० १।२।२ । - न्या० सू० ११२१३ ।
- न्या० सू० १|२| १० |
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