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५८
१००
आप्तमीमांसा-तत्त्वदीपिका नियोग
५३ पुरुषोंमें विचित्र अभिप्रायके होने भावना आदिमें परस्पर विरोध ५४ पर भी सर्वज्ञके निश्चयकी मीमांसादर्शन ५५-५७ सिद्धि
८५ तत्त्वव्यवस्था
इष्टका अर्थ तथा इच्छाके विना प्रमाणव्यवस्था
भी वचन-प्रवृत्तिकी सिद्धि ८७ वेदान्तदर्शन
क्षणिकैकान्तको सिद्धि किसी प्रमाण चार्वाकदर्शन
५९ से नहीं होती है ८९ तत्त्वोपप्लववादी
६१ अविनाभावका ग्रहण प्रत्यक्षादिसे वैनयिक
नहीं होता है। किन्तु तर्कसे सर्वज्ञाभावके विषयमें मीमांसकका
होता है। पूर्वपक्ष
६२
एकान्तवादियोंका इष्ट तत्त्व प्रमामीमांसकके पक्षका निराकरण ६३
णबाधित है। ९१ सर्वज्ञमें समस्त पदार्थोंके जाननेका स्वभाव
सुख आदि सर्वथा ज्ञानरूप नहीं दोष और आवरणकी पूर्ण हानिकी सिद्धि
पदार्थ न तो सर्वथा परमाणुरूप है सर्वज्ञकी सिद्धि
७२
__ और न स्कन्धरूप। ९४ अर्हन्तमें सर्वज्ञताकी सिद्धि ७७ प्रत्यक्षसे अनेकान्तात्मक तत्त्वकी अर्हन्त द्वारा प्रतिपादित तत्त्वोंमें अविरोध
अन्वय और व्यतिरेक दोनोंके चार्वाकके भूतरूप आत्मतत्त्वका
प्रयोगकी सार्थकता ९६ निराकरण
७९
प्रतिज्ञा आदिके प्रयोगमें निग्रहसांख्य द्वारा अभिमत मोक्षका स्व- स्थानका निराकरण ९६
रूप तथा उसका निराकरण ८१ जय-पराजय व्यवस्था १०० नैयायिक-वैशेषिक द्वारा अभिमत- एकान्तवादमें, कर्म, परलोक आदि
मोक्षका स्वरूप तथा उसका की व्यवस्था नहीं बन सकती निराकरण ८२ है।
१०१ वेदान्त द्वारा अभिमत मोक्षका भावैकान्तका निराकरण १०५ स्वरूप तथा उसका निराकरण ८३ सांख्यके भावैकान्तका निराकरण बौद्ध द्वारा अभिमत मोक्षका स्व
१०७ रूप तथा उसका निराकरण ८३ वेदान्तके भावैकान्तका निराकरण सांख्य आदि द्वारा अभिमत मोक्ष
१०९ __ कारण, संसार तथा संसारके प्रागभाव तथा प्रध्वंसाभावके न
कारणका निरास ८४ मानने में दोष ११२
सिद्धि
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