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________________ १०१ विषय-अनुक्रमणिका सांख्यदर्शनमें घटकी उत्पत्ति तथा शब्दसंसर्गरहित निर्विकल्पकसे मोमांसादर्शन में शब्दकी उत्प- सविकल्पककी उत्पत्ति नहीं त्तिकी सिद्धि ११४ हो सकती है। १३८ शब्दके विनाशकी सिद्धि ११७ शब्द और अर्थ में सम्बन्धकी वर्गों में नित्यत्व और व्यापकत्वका सिद्धि १३९ निराकरण ११८ इन्द्रियप्रत्यक्षमें व्यवसायात्मकत्व शब्दमें पौद्गलिकताकी सिद्धि की सिद्धि १४० पदार्थकी स्मृतिके विषयमें प्रज्ञाकर अन्योन्याभाव तथा अत्यन्ताभावके के मतको निरास के मतका निरास १४१ न मानने में दोष १२१ नययोगसे सदेकान्त, असदेकान्त, ज्ञानके दो आकारोंमें अन्योन्याभाव उभयकान्त तथा अवाच्यतैकी सिद्धि . १२१ कान्तकी व्यवस्था १४२ सम्बन्धमें वास्तविकताका सिद्धि । सात भंगों द्वारा सत्त्वादि धर्मों के १२३ निरूपणकी व्यवस्था १४३ पदार्थमें उत्पत्ति, स्थिति और भंग सात ही होते हैं, कम या विनाशकी सिद्धि १२४ अधिक नहीं। १४६ अभावकी सत्ताकी सिद्धि १२५ ज्ञान-दर्शनरूप नित्य आत्माकी अभावैकान्तका निराकरण १२६ अभावैकान्तवादी माध्यमिकके मत उभयरूप तत्त्वकी सिद्धि १५१ का निराकरण १२७ तत्त्वमें सर्वथा वाच्यत्वका निराभाव और अभावके विषयमें उभ- करण १५२ यैकान्त तथा अवाच्यतैकान्त- वस्तुको सत् तथा असत् माननेकी का निराकरण १२९ निर्दोष विधि १५३ भाह द्वारा अभिमत उभयकान्तका वस्तुक सत्त्व आर असत्त्व धाम निराकरण १३० अविरोधकी सिद्धि १५४ साख्य द्वारा अभिमत उभयैकान्त- वस्तुके एकत्व तथा अनेकत्व धर्मों का निराकरण १३१ में अविरोधकी सिद्धि १५५ बौद्ध द्वारा अभिमत अवाच्यतैका- वस्तुको उभयात्मक तथा अवाच्य न्तका निराकरण १३१ माननेकी निर्दोष विधि १५७ निर्विकल्पक प्रत्यक्ष और सविक- अकलंकदेवके अभिप्रायसे सदव ल्पक प्रत्यक्षकी उत्पत्ति, विषय क्तव्य, असदवक्तव्य और सद आदिका विचार १३२ सदवक्तव्यका विशेषार्थ १५९ स्वलक्षण और सामान्यमें अभेद अस्तित्व धर्म नास्तित्वका अविनासिद्धि १३६ भावी है। १६१ सिद्धि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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