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________________ प्रजापाल नृप, सरस्वती कुटुंब, सुमति कुमार, अभय मंत्रि कारित श्वेतश्याम चैत्य, सिद्धसेन सूरि, मदिरा वेश्या, भीम (पत्तनाधीश), कुरुचांडाल, सुमतिमंत्रि, मूषक, घृतचर्मव्यापारी, वैकुंठ विप्र, सुरूपा श्रेष्ठिवधू, सौवर्णिक, विक्रमादित्य, खेम, भाविनीराज्ञी, सीतासती आदि की कथओं को समाहत किया है। ___'कथारत्नाकर' में आये हुये कथानकों पर दृष्टिपात करने से यह प्रतीत होता है कि अपने पूर्ववर्ती विद्यामान कतिपय स्रोतों को भी आधार मानकर हेमविजयगणि ने ग्रन्थ का कलेवर तैयार किया होगा। जब कथा की विधा पर शास्त्रीय प्रभाव कम होने लगे तब कथा साहित्य पर से धार्मिक प्रभाव घटने से धर्मनिरपेक्ष साहित्य का सृजन होने लगा। 'पंचतन्त्र' की तरह 'कथारत्नाकर' भी गद्यबद्ध है। अत: यह कहा जा सकता है कि हेमविजयगणि का 'कथारत्नाकर' ऐसे धर्मनिरपेक्ष कथा-साहित्य का प्रतिनिधि-ग्रन्थ है। _ 'कथारत्नाकर' में सङ्ग्रहीत कथाओं से मुगलकालीन भारत के जीवन को झांकी मिलती है। न तो इन कथाओं में अन्योक्ति हैं और न ही उपदेशात्मक तत्त्व ही मानवीय तत्त्वों को गौण कर सेक हैं। ये कथाएँ विशुद्ध नैतिक और सरल हैं। कहीं-कहीं चमत्कारिक तत्त्व, आकाशगामिनी विद्या, बहुरूपिणी, परकायाप्रवेश विद्या के एकाध उल्लेख आते हैं। 'बृहत्कथा' और 'पञ्चतन्त्र' की पशु-कथाओं का अनुकरण करते हुये 'कथारत्नाकर' की कतिपय कथाओं की रचना हुई। इस ग्रन्थ में शृगाल, सर्प, कपि, घेघा-मेघा, मूषिका, मृगीमृगयु, काककाकी, घूकहंस, हंसकाकसाक्षि आदि की कथाएँ आकर्षक ढंग से प्राप्त होती हैं। उनके अलावा भी अनेक पशु-कथाएँ और ग्रथित है। साहसिक अभियानों, यात्राओं. सामद्रिक यात्राओं, व्यापारिक क्रिया-कलापों आदि के भी वर्णन आते हैं। तस्करी, चोरी, अपहरण, वेश्यावृत्ति आदि के प्रकरण भी आते हैं। इन कथाओं ने स्वतंत्र समाज का चित्र किया है जो उस युग को अज्ञात था। इसमें सह-शिक्षा, ललित कथाओं में पारंगत नारियों के वर्णन तथा उच्चस्तरीय सुसंस्कृत जनों के उल्लेख आते हैं। प्रेमदान और प्रणय की कथाएँ भी हैं। प्रणयदान और प्रणयतिरस्कार कथा को णावनात्मक स्तर तक उठा देते हैं। एक कथा का नायक दूसरी कथामें भी प्रवेश पाता है। यही हाल नायिका का भी होता है। ऐसा ही हश्र राजा और प्रजा का भी होता है। एकाध उदाहरण ऐसे भी हैं। जहाँ एक ही विषय की तीन-तीन या चार-चार कथाएँ क्रमश: कही गई हैं। अतः संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि हेमविजयगणि ने ग्रन्थारम्भ में स्पष्टतः सूचित किया है कि उनकें 'कथारत्नाकर' ग्रन्थ के दो प्रमुख स्रोत हैं :(१) श्रुति (सुनी हुयी कथाएँ) और (२) स्वमति (स्वयं अपनी बुद्धि से रची हुई कथाएँ) १. 'कोऽपि देवो व्योममार्गेणोत्पत्य क्वापि ययौ। तत् श्रुत्वा विस्मितेन राज्ञा भगवान् पृष्टः ।'- कथारत्नाकर, पृ. १२ २. कथारत्नाकर, द्वितीय तरंग, पृ............ 3. दे. कथारत्नाकर की कथा सं. १२१, १३६, १४०, १४८, १४९, २४९, आदि। ४. वही पृ. १९५ ५. 'श्रुताः काश्चित् काश्चित् स्वमतिरचिताश्चित्ररचना:'- कथारत्नाकर, पृ. ३ ग्रन्थ का रचना - समय :- ग्रन्थान्त में शील विषयक सीतासति कथा का समापन करने 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001835
Book TitleKatharatnakar
Original Sutra AuthorHemhans Gani
AuthorMunisundarsuri
PublisherOmkar Sahityanidhi Banaskantha
Publication Year1997
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size24 MB
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