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कथाओं का सङ्ग्रह किया था जो हरिषेण के 'कर्पूरप्रकर' पर आधारित है। इसी श्रृंखला में हेमविजयगणि ने 'कथारत्नाकर' का सृजन किया।
हेमविजयगणि की साहित्यिक रचनाएँ :- हेमविजय गणि ने साहित्य की विविध विधाओं पर लेखनी चलायी थी। उनकी रचनाओं का वर्गीकरण तीन श्रेणियों में किया जा सकता है :(१) चरित्रकथा (२) काव्य और (३) प्रकीर्णक कृतियाँ। चरित्र-कथा के अन्तर्गत दो प्रमुख रचनाएँ है- 'पार्श्वनाथचरित्र' और 'कथारत्नाकर'। 'पार्श्वनाथचरित्र' की रचना हेमविजयगणि ने १५७५ ई० में की थी। परन्तु 'विजयप्रशास्तिकाव्य' १६२४ ई० में रचा। यह काव्य २१ सर्गों में है। १६ सर्ग पर्यन्त हेमविजयगणि ने रचना की है। अंतिम ५ सर्ग टीकाकार गुणविजय द्वारा जोडे गये हैं। यह काव्य तपागच्छ के हीरविजय, विजयसेन और विजयदेव सूरियों के विषय में सूचना देता है। मूलपाठ और टीका दोनों ही यशोविजय जैन ग्रंथमाला (सं. २३) में भावनगर द्वारा प्रकाशित हैं। अतः इस काव्य-ग्रंथ के अंतिम पाँच सर्गो की रचना और इस सम्पूर्ण ग्रन्थ पर पृथक टीका हेमविजयगणि के गुरुभाई विद्या विजय के शिष्य गुणविजय ने की। टीकी का नाम 'विजयदीपिका' (१६३१ ई०) है।
___ 'ऋषभशतक' की रचना हेमविजयगणि ने १५८८ ई० में की थी जिसे लाभाविजय पण्डित ने शुद्ध किया था। तपागच्छ के विजयसेनसूरि का आनिधन १६१४ ई० में हुआ था। उनकी प्रशंसा में हेमविजय ने 'कीर्तिकल्लोलिनी' रचा। 'सूक्तिरत्नावली' के सृजन का श्रेय भी हेमविजयगणि को है। इसका वर्णन विजय प्रशस्तिकाव्य पर लिखी गयी वृत्ति की प्रशस्ति में है। फत्तेहचन्द बेलानी ने 'चतुर्विशतिस्तुति' नामक ग्रंथ-रचना का श्रेय हेमविजय गणिको दिया है। किन्तु न तो यह मुझे उपलब्ध हो सकी है और न ही अन्यत्र इसका वर्णन मिला है। हाँ, 'चतुर्विंशतिजिनस्तव' नाम के कई ग्रंथ प्राप्त होते हैं जिनमें से एक हेमविजयगणि के गरु कमलविजयगणि द्वारा रचित बताया जाता है, न कि हेमविजयगणि द्वारा ।
इसी प्रकार-हेमविजय गणिकृत 'स्तुतित्रिदशतरङ्गिणी' बहुचर्चित है। वस्तुतः 'तपागच्छपट्टावलि' को 'बृहत्तपागच्छगुर्वावलि' और 'त्रिदशतरङ्गिणी' भी कहते है। यही 'त्रिदशतरङ्गिणी' आ. सोमसुन्दरसूरि के शिष्य आ. मुनिसुन्दरकृत गुर्वावलि है जो १४०८ ई० में रची गयी थी। यह यशोविजय जैन ग्रन्थमाला (सं.८) बनारस से १९०४ ई० में प्रकाशित की गयी है। हो शकता है कि इसी त्रिदशतरङ्गिणी की स्तुति में ही हेमविजय गणि ने 'स्तुतित्रिदशतरङ्गिणी' रची हो। 'कस्तूरी प्रकरण' नाम के चार भिन्न लेखकों द्वारा रचे चार ग्रन्थ सामने आये हैं यथा श्रीसोमसन्दर उपाध्याय, श्रीसंवेगसन्दर, श्रीहेमविमलगणि तथा श्रीहेमविमलगणि द्वारा। अंतिम दो नामों में ध्वन्यात्मक साम्य होने से संशय उत्पन्न होता है कि कहीं हेमविजयगणि के कस्तूरीप्रकरण' का रचनाकर हेमविजयगणि ही तो नहीं है। किन्तु यह सत्यापित है कि हेमविजयगणि ने कस्तूरीप्रकरण' नामक ग्रन्थ हीरविजयसूरि के शासन में रचा था और इसमें १८२ कारिकाएँ
परन्तु हेमविजयगणि की इन साहित्यिक रचनाओं में 'कथारत्नाकर' सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसका सविस्तर वर्णन आगे किया जाएंगा। १. जिनरत्नकोश एच. डी. वेलणकरकृत, पृ. ६६ । २. कृष्णमचारी: हिर्टरी ऑफ संस्कृत लिटरेचर, पृ. ३८७ । 3. बेलानी: जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकार, पृ. ४७।
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