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________________ 'हेमविजयगणिकृत' कथारत्नाकर :- हेमविजयगणिकृत 'कथारत्नाकर' दस तरंगों में विभाजित २५८ कथाओं का सुन्दर संग्रह है। इसे तपागच्छ के कमलविजयगणि के शिष्य हेमविजयगणि ने १६०० ई० में रचा तथा जिसका मूलपाठ हीरालाल हंसराज जामनगर से १९११ ई० में प्रकाशित हुआ था। 'कथारत्नाकर' प्राञ्जल संस्कृत गद्य में लिखा हुआ है जिसकी मूल प्रतियाँ बडौदा आदि भण्डारो में सुरक्षित है। ग्रन्थ के महत्त्व से आकृष्ट होकर जे. हर्टेल ने १९२० ई० में इस ग्रन्थ का जर्मन भाषा में अनुवाद किथा था। ग्रन्थागत तरंगो का संक्षिप्त परिचय :- समूचा ग्रंथ दस तरंगों में विभाजित हैं। प्रथम तरंग में श्रेणिक, उद्धवविप्र, दंडिनामक प्रतिहार, युधिष्ठिर, अमरसुंदरी, सपत्नीकथा, मित्राविषये कथा, हेमाचार्य, भोजराज, शीलवती, गंगदत्त द्विज, मुकुन्दपत्नी, शृगाल और, सर्प कथाएँ दी हुई है। तथा द्वितीय तरंग में दौप्रदी-नारद, वररुचि, सुरसेन, योगीत्रय, विक्रमादित्य, मूर्ख, दान, सत्संग, ज्ञान, वाषवयोगि. राणिक तैलिक, कपि, चतर्मित्र, धत-व्यसन, सागर श्रेष्ठि, घेघामेघा आदि कथाएँ। तृतीयतरंग ४९वी कथा से प्रारंभ होकर ७५ वी कथा पर समाप्त होती है जिसमें रामवसिष्ट, मूर्खद्विज, साधवविप्र, राजा भर्तृहरि, वेश्या-प्रणय, गंगा, नीलकंठविप्र, कुट्टिनी, कमलावी विप्र,वेश्याकथा, चौरद्वय, विप्र, गुणासुंदरी, मुषिका मित्रदत्त, विक्रमादित्य, मृगीमृगयु, पुण्यसुंदरी, गजराज वाणिक्, वसुदत्त, रांकाश्रेष्टि, कालिदास, पुणषोत्तम, की कथाएँ समाविष्ट है। चतुर्थतरंगमें काकघूक , घूकहंस, आभीरपुत्री, भारवाहिक, विक्रमादित्य, चौर, श्रेणिक, हंसकाकसाक्षि, प्रियगंगा, संकुल, राज्ञी, धूर्त, प्रीतिमती, पंडित, सूत्रधार, भानुमंत्री तथा नापित स्त्री की कथाएँ अनुस्यूत है। प्रियानंदरी, यूका, धनश्री, विप्र, प्रियादामिनी, त्रिविक्रमभट्टप्रिया प्रेमवती, हेमचन्द्रसूरि, सिद्धदेवी, विक्रमादित्य, केशव भट्ट, दामोदर विप्र, कुषुमश्रीश्रेष्ठिनी, दंभमंत्रि, रूपसेना, शृगाल, सुरदत्त, चंदनश्री, कोलिक, श्वानचौर, तापसत्रय आदि कथाएँ पंचम तरंग में हैं। षष्ठ तरंग कांदाविक कललकोलिक, वासणचौर, प्रियंगु, वैष्णवी ब्राह्मणी, सरण सुवर्णकारे, मधुमथन, भूपवानर, संभरचौर, शोभनमुनि धनपालपंडित, मुंजभोज, शेषनाग, मतिशेखरमंत्रि, सारंग तरंगवाल, ब्राह्मणी, कर्मकर हंसमूषक, शशक, सिंह शृगाल, जीनदत्तश्रेष्ठि की कथाओं से आवेष्ठित हैं। सप्तम तरंग में देवसीवणिक, लाखण, योगी मौनवती की चार कथाएँ विक्रमादित्य, चंडश्रेष्ठि, धूर्तचरित्र, कलसी, मणिमति, नागिणी वृद्धा, एकलव्य भिल्ल, वस्तुपाल मंत्रि, डामर दूत, दुर्धर, पुष्पवती, महाबल, श्रेष्ठिपत्नी वणिक् स्त्री, अशोकश्री आदिकीसथों को तथा अष्टमतरंग में गणिका, गोविंद सार्थवाह, विक्रमादित्य रूपश्री, मृगांकभूप, सुरूपा, कमल श्रेष्ठि, मकुंदविप्र, भोजराज, सुदर्शन, नरदत्त, नंदमणि, अंधकुब्जात्रीस्तती राजपुत्री चंडचूडराजकुमार, श्रीकंठद्विज, वसुभूति, धनश्री, विप्रपुत्र कनकसेनाराज्ञी, सुवर्णकार, दामोदरविप्र आदि की कथाओं को स्थान दिया गया है। हेमविजयगणिने नवम तरंग में वैजीकुटुंबिनी, सारदानदं, शेखर सुर्वणकार, रूपचडं, रूपसेन, चंडशेखर, गुणरत्न, खेम, विप्रपुत्री, मंत्रि, विजयाविजय, चांडालपुत्र, मित्र, वेताल भट्ट, कुशल द्विज, कुंडल शोभन-काममंजरी वेश्या, विक्रमादित्य भीममंत्रि भार्या आदि की तथा दशम और अंतिम तरंग में मूर्ख कथाएँ, चतुर्विप्र, विक्रमादित्य, रविचंड कवि, फूलडी, रत्नसार श्रेष्ठि, पितृ-पुत्र-पत्नी, 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001835
Book TitleKatharatnakar
Original Sutra AuthorHemhans Gani
AuthorMunisundarsuri
PublisherOmkar Sahityanidhi Banaskantha
Publication Year1997
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size24 MB
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