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पृष्ठाङ्क ३६८-३६६ ३६६ ३६१-५.. ४००-४०३ ४०३-४२६ १०३-४०८ ४०८-४१. ४१०-४१२ ४१२-४१३
४१६-४१८ ४१८-४१६ ४१६-४२१
४२१-४२३ ४२३ ४२३-१२४ ४२४-४२६
सूत्राङ्क विषय
गाथाढ़ १६-२७ कायिक-कथावाचक की वन्दना एवं प्रशंसा का निषेध ४३५३-४३१५ ५८-५९ पासणिय की वन्दना एवं प्रशंसा का निषेध
४३५६-१३१८ ६.-१ ममत्वी की वन्दना एवं प्रश्चंसा का निषेध
४३५१-४६० ६२-६३ संप्रसारिक की वन्दना एवं ,, ,
४३६१-४३७४ ६४-७८ घात्री पिण्ड आदि के उपभोग का निषेध
४३७५-४४०२ ६४ धात्रीपिण्ड के उपभोग का निषेध
४३७५-४३६२ ६५ दूतिपिण्ड "
४३६६-४४०३ " ६६ निमित्तपिण्ड , ,
४०४-४०६ ६७ माजीविकापिण्ड ., .
४१०-४४१७ ६८ वनीपकपिण्ड ।
४४१८-४४३१ ६४ निकित्सापिण्ड
४४३२-४४८ ७० कोपपिण्ड
४३१-४४३ ७१ मानपिण्ड
४४४-४४५४ ७२-७५ मायापिण्ड, लोमपिण्ड विद्यापिण्ड एवं मन्त्रापण्ड के उपभोग
का निषेध ७६ चूर्णपिण्ड के उपभोग का निषेध
४६२ ७७ अन्तर्धानपिण्ड , , ७. योग पिण्ड
४.६८-४९७२ चतुर्दश उद्देशक प्रयोदश एवं चतुदंश उद्देशक का सम्बन्ध १ पात्र-सम्बन्धी विधि-निषेध
४४७6 पात्र मोल लेने का निषेध
४४७४-४४८५ पात्र उधार लेने का निषेध
४४८६-४४६२ पात्र अदल-बदल करने का निषेध
४४६३-४५६६ पात्र छीनने का निगेध .
४५००-४५२३ ५ अतिरिक्त पात्र ग्रहण करने का निषेध
४५२४-४६०४ ६ अतिरिक्त पात्र समर्थ माधु साध्वियों को देने का निषेध . अतिरिक्त पात्र असमर्थ सावु-साध्वियों को न देने से लगने वाले दोष
४६१८-४६२५ ८-६ खण्डित एवं कमजोर पात्र रखने का निषेध एवं अखण्टिन तथा मजबूत पात्र रखने का विधान
४६२६-४६३१ १.-११ सुवर्ण पात्र को विवर्ग एवं विवर्ग पात्र को मवर्णबनाने का निघ ४६३२-४६३६ १२-२३ नवीन, मुरभिगंव, अथवा दुरभिगंध पात्र को विशेष प्राकर्षक बनाने का निषेध
४४०-४६४६ २४.३४ अन्तररहित सचित्त पृथ्वी,
मचित रजवाली पृथ्वी. मस्निग्ध ध्वी प्रादि पर पाय को घूा में मुनाने का निपंध ४६४७-४६५१
८२७
४२७-४२६ ४२६-४३१ ४३१-४३२ ४३२-४३८ ४३८-४५७ ४५-४५८
४१८-४५६
४५६-८६१ ४६१-४६२
४६२-८६६
६ ६-४६८
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