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________________ तृतोयः वराङ्ग चरितम् सगः निरङ्कुशो मत्त इव द्विपेन्द्रो यथा प्रविश्य प्रतिशत्र सेनाम् । नेत्रा सहैवाश विनाशमेति जीवस्तथा ज्ञानविहीनचेताः ॥ ५७ ॥ यथैव तीक्ष्णाशवान् गजेन्द्रो मद्गात्यरीणां पृतनाः प्रसह्य । तथैव मोहारिमहोग्रसेनां ज्ञानादृशो निर्जयति क्षणेन ॥ ५८॥ यथा दवाग्नेरपसर्तुकामो घावंस्तु तत्र व पतत्यचक्षुः । अज्ञाननीलोवृतलोचनस्तु तथैव दुःखानलमभ्युपैति ॥ ५९॥ यथा दवाग्नेरपसृत्य पगुः स्वदेशमाप्नोति शनैरुपायैः । सज्ञानचक्षुश्च तपांसि कृत्वा तथा बधो निर्वतिमभ्युपैति ॥६॥ इत्येवमादीनि निदर्शनानि जगत्प्रवृत्तान्यवलोक्य बद्धया। अल्पश्रमादेव विशद्धदष्टिः स मोक्षसौख्यं लभते च विद्वान् ॥ ६१॥ चELATASHAI L EE महावतके अंकुशका संकेत न माननेवाला उद्दण्ड, मदोन्मत्त हाथी जिस प्रकार प्राणके ग्राहक शत्रुओंकी सेनामें धुसकर सहसा ही अपने ऊपर बैठे योद्धाओंके साथ व्यर्थ प्राण गँवाता है उसी प्रकार ज्ञानरूपी अंकुशसे हीन चित्तवाला जीव व्यर्थ ही जन्म मरणके दुःख भरता है ।। ५७ ।। ज्ञानांकुश का उदाहरण किन्तु जो हाथी हस्तिपकके संकेतको शोघ्र ही समझता है और उसके ही अनुसार चलता है वह श्रेष्ठ हाथी शत्रुसेनाको । घेर-घेरकर जैसे पैरोंसे रोंदता है वैसे ही ज्ञानपूर्वक आचरण करनेवाला जीव मोहनीयकर्मरूपो भयंकर शत्रुकी उग्रसेनाको भी देखते-देखते सर्वथा पराजित कर देता है । ५८॥ अंधपंगु का निदर्शन जंगलमें लगी सर्वतोमुखी दावाग्निसे बचकर निकल भागनेका प्रयत्न करता हुआ अंधा पुरुष जिस प्रकार घूम फिरके। फिर उसीमें जा पड़ता है, आँखोंपर अज्ञानरूपी कालिमाका मोटा परदा पड़ जानेपर यह जीव भी उसी प्रकार दुख ज्वालाओंमें जा पड़ता है और भस्मसात् हो जाता है ।। ५९ ॥ सूझता लंगड़ा आदमी भी अनेक उपयुक्त उपायोंके सहारेसे धीरे-धीरे दावाग्निसे बाहर निकलकर जिस प्रकार अपने स्थानपर पहुँच जाता है, उसी प्रकार ज्ञानोपुरुष अपने ज्ञानरूपी नेत्रोंसे सुपंथको पहिचान लेता है और आगमके अनुरूप तप करके । ५५ । सरलतासे परम निर्वाणको प्राप्त कर लेता है । ६० ।। . विवेक माहात्म्य संसार में अत्यन्त प्रचलित इन सब दृष्टान्तोंको अपनी बुद्धिरूपी आँखसे भलीभाँति परखकर सत्य श्रद्धासे युक्त सम्यक् R SNIRD For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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