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________________ तस्मिन्पुरे सर्वजनाभिगम्यं उद्यानमत्यन्तसुखप्रदेशम् । मनोहरं नाम मनोऽभिरामं कृताननादं मधुकृविरेफैः ॥ ५॥ तस्यैकदेशे रमणीयरूपे शिलातले जन्तुविजिते च । दयापरैन्तिमदेन्द्रियाश्वैः सहोपविष्टो मुनिभिर्मुनीन्द्रः ॥६॥ एकैकशः केचन पिण्डिताश्च केचित्स्थिताः केचन संनिषण्णाः। स्वाध्यायमन्दध्वनिरक्तकण्ठा वाचंयमाः केचन साधुवर्याः ॥७॥ तेषां यतीनां हि तपोधनानां जाज्वल्यमानोत्तमशीलभासाम् । मध्ये बभासे वरदत्तनामा ज्योतिर्गणानामिव पूर्णचन्द्रः ॥८॥ तृतीयः सर्गः संघके साथ अनेक नगरों, खनिकोंकी बस्तियों ( आकर ) ग्रामों, अडम्बों और खेड़ोंमें विहार करते हुए जिनधर्म और उसके परम प्रभावका उपदेश देनेके लिए ही क्रमशः उत्तमपुरमें जा पहुंचे थे।॥ ४ ॥ RECEITHEIGHERBELOPERATORSEARमान्य मनोहर उद्यान महाराज धर्मसेनकी राजधानीमें सर्वसाधारणके विहारके लिए खुला हुआ 'मनोहर' नामका विशाल उद्यान था। उसके कुंज, लतामण्डप, दूर्वाप्रदेश, वीथि आदि सब ही स्थान लोगोंके लिए अत्यन्त सुखद थे, फलतः वह दर्शकोंके मनको अपनी ओर आकृष्ट करता था तथा पुष्पोंके परागका संचय करनेमें लीन भौंरोंके शब्दसे वह उद्यान सदा गूंजता ही रहता था !। ५॥ इस उद्यानके अत्यन्त रमणीय भागमें एक परम सुन्दर तथा कीड़ा-मकोड़ोंसे रहित पूर्ण स्वच्छ विशाल शिला पड़ी थी। इसी शिलापर मुनिराज वरदत्तकेवली उन सब महामुनियोंके साथ विराजे थे जिन्होंने अपने उद्धत मन और इन्द्रियरूपी अश्वोंको पूर्णरूपसे आज्ञाकारी बना लिया था और जिनकी प्रत्येक चेष्टा दयाभावसे ओत-प्रोत थी ।। ६॥ कोई, कोई साधु अलग-अलग बैठकर आत्मचिन्तवन कर रहे थे, दूसरे कितने साधु इकट्ठ बैठकर शास्त्र चर्चा कर रहे थे, अन्य लोग पूर्ण ध्यानमें लीन थे, कुछ मुनियोंके मुखसे शास्त्र पाठकी धीर, गम्भीर और मधुरध्वनि निकल रही थी तथा शेष परम योगी मौन धारण किये थे ॥ ७॥ निरतिचार पूर्ण चारित्रकी कान्ति और ओजसे जाज्वल्यमान तपके धनी उन सब ऋद्धिधारी मुनियोंके बीचमें विराजमान श्रीवरदत्तकेवली ऐसे शोभित हो रहे थे, जैसा कि पूर्णिमाका चन्द्रमा समस्त ग्रहों, नक्षत्रों और तारिकाओंके बीचमें होता है ॥ ८॥ [४३] म For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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