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________________ Des द्वितीयः RRETARIATRE श्रुत्वा वचो धर्मपथा'नपेतं निरुत्तरं सर्वजगावगम्यम् । तं श्रद्दधुर्धर्मफलं मनुष्याः प्रत्यक्षसद्दर्शनजातरागाः ॥ ८५॥ प्रशस्तनक्षत्रमुहूर्तयोगे ग्रहेषु सर्वेषु समन्वितेषु । स्वोच्चस्थिते चन्द्रमसोष्टपक्षे चकार पाणिग्रहणं वधूनाम् ॥ ८६ ॥ श्रीधर्मसेनः सकलत्रपुत्रः सन्मानदानैरभिसंप्रपूज्य । लोकोपचारग्रहणानवल्या विसर्जयामास वसुधरेन्द्रान् ॥ ७॥ संप्राप्य कल्याणमहाविभूत्या विराजमाना दुहितनिरीक्ष्य । जामातरं चायितराजलक्षम्या वसुन्धरेन्द्राः प्रययुः स्वदेशान् ॥ ८॥ e ___ धर्म मार्गके सर्वथा अनुकूल इन वचनोंको सुनते ही समस्त स्त्रो पुरुषोंको धर्मके आचरण तथा उसके शुभ फलपर तुरन्त अडिग श्रद्धा हो गयी थी, क्योंकि जन्मान्तरोंमें किये गये शुभकर्मों के सुफलोंके भोक्ता कुमार वराङ्ग तथा उसकी पत्नी राजकुमारियाँ उनके चर्मचक्षुओके सामने थे। इसके अतिरिक्त यह वचन इतने सरल थे कि अति सरलतासे सबकी समक्षमें आ गये थे, और कुशंका करनेवालोंको निरुत्तर कर देते थे ।। ८५ ।। जिस शुभ मुहर्तमें समस्त मंगलकारी नक्षत्रोंका उदय था, सबके सब ग्रह अपने-अपने अतिउच्च स्थानपर थे तथा । चन्द्रमा भी अत्यनुकूल उन्नत स्थानपर था, उसी शुक्लपक्षके परम श्रेयस्कर मुहूर्तमें महाराज धर्मसेनने दशों बहुओंका पाणिग्रहण संस्कार कराया था ।। ८६ ॥ metNIN4mmarredeemen S ERचामाचा विवाह मंगल लोकाचर और गृहस्थाश्रमकी मर्यादाओं तथा विधियोंको अक्षुण्ण बनाये रखनेकी इच्छासे ही महाराज धर्मसेनने अपनी पट्टरानी तथा पुत्रको साथ लेकर अभ्यागत राजा, महाराजाओंका परिपूर्ण स्वागत किया था तथा प्रचुर भेंट दी थी और अन्तमें , विधिपूर्वक विदायी की थी।। ८७ ।। पृथ्वी पर इन्द्रके समान प्रतापी तथा वैभवशाली वे राजा लोग भी, सुयोग्यवररूपी महाकल्याण तथा अन्य विपुल विभूतियोंकी प्राप्तिसे परम शोभायमान अपनी राजदुलारियों तथा उसी समय विशाल राज्य सम्पत्तिको प्राप्त करनेवाले श्रेष्ठ दामादसे भेंट करके अपने-अपने देशोंको लौट गये थे ।। ८८ ॥ -H-TRICKASSES 8 १. म धर्मपथा न भीतं । २. क सोच्चस्थिते, [ सूच्च स्थिते ]। ३. [ संप्राप्त° ]। ४. [ चागत° ] । Jain Education International For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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