SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयः वराङ्ग चरितम् अन्ये च तेषां नृपमन्त्रिमुख्या अनन्तचित्राजितदेवसा'ह्वाः। कुम्भैज्वलद्रत्नमयैरनेकैः शुद्धाम्बुपूर्णश्च समभ्यषिञ्चन ॥७२॥ पौरप्रधाना नरदेवभक्त्या ते पार्थिवैः फल्लफलाक्षमित्रैः। घटैश्च नानाविधवर्णतोयैः पदाभिषेकं सूतनोः प्रचक्रुः ॥ ७३ ॥ समेत्य सम्यग्बहुबन्धुवर्गा रागोद्धता मङ्गलजातहर्षाः । यन्त्रैरनेकैर्वरवर्णपूणरन्योन्यगात्राण्यभिचिक्कूदस्ते२ ॥७४॥ केचिच्छशंसुनवरं वराङ्गं महीपतीनां तनयाश्च केचित् । अन्योन्ययोग्या इति केचिदूचुराश्चर्यमन्ये परमं प्रजग्मुः ॥ ७५ ॥ सर्गः अभिषेक क्रम इन्हीं कलशोंको उठाकर पृथ्वीके प्रधान रक्षक महाराजाओंने सबसे पहिले कुमार वराङ्गका अभिषेक किया, इसके उपरान्त उन सब राजाओके प्रधान सामन्तों और अनन्तसेन, चित्रसेन, अजितसेन, देवसेन आदि प्रधानमन्त्रियोंने क्रमशः जाज्वल्यमान रत्नोंसे जटित, शुद्ध, सुगन्धित तीर्थोदकसे पूर्ण विशाल कलशोंको लेकर विधिपूर्वक युवराजका अभिषेक किया ।। ७२ ।। तदुपरान्त राजभक्तिसे प्रेरित नगरके प्रधान, प्रधान सभ्योंने अपने मिट्रोके कलश, उठाये-जिनमें नाना प्रकारका सुगन्धित रंग-बिरंगा जल भरा हुआ था और उसमें विकसित फल, फल, अक्षत आदि मंगल द्रव्ये मिली हुई थीं-और सुन्दर राजकुमारके केवल चरणोंका अभिषेक किया। ७३ ॥ कुमारके प्रेम और भक्तिसे उद्धत तथा अभिषेक होनेसे परम प्रसन्न सबही सगे सम्बन्धियों तथा बन्धुबान्धवोंके झुण्डोंने सब तरफसे घेरकर अनेक गंधों और रंगोंसे पूर्ण यन्त्रों ( पिचकारियों ) द्वारा कुमारपर जल छोड़ना प्रारम्भ कर दिया था। इससे उन्होंने परस्परमें एक-दूसरेके शरीरको भी खूब भिगो दिया था ।। ७४ ।। युवराजभक्ति कोई लोग श्रेष्ठ युवराज वराङ्गका गुणगान करने में ही मस्त थे । दूसरे राजपुत्रियोंकी प्रशंसा करते-करते न अघाते थे। कुछ ऐसे लोग भी थे।जो यही कहते फिरते थे कि भाई यह कुमार और कुमारियाँ वास्तवमें एक-दूसरेके योग्य हैं और शेष लोग उनको देखकर आश्चर्य समुद्र में डूबते और उतराते थे ।। ७५ ॥ १. [ °धोवराह्वाः ।। २. [ अभिचिक्लि दुस्ते ] । Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy