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________________ वराङ्ग चरितम् प्रवालमुक्तार्माणिभिर्विचित्रैविन्यस्तनानाविधभक्तिचित्रा 1 भ्रमद्वरेफाहत केसरेण पुष्पोपहारेण रराज भूमिः ॥ ६८ ॥ स्वाभाविकश्चाप्रतिकान्तरूपो माङ्गल्यकर्मण्यभिसंस्कृताङ्गः । सिंहासनस्योपरि संनिषण्णो बभौ शशीवोदय पर्वतस्थः ॥ ६९ ॥ अष्टाभिराभिर्भुवि सुन्दरीभिर्मनोहराङ्गया सुतया सदृश्या । श्रेष्ठयग्रपुत्र्या धनदत्तया च समं कुमारो दशभिवंराङ्गः ॥ ७० ॥ हैमैर्घटैर्गन्धविमिश्रतोयैग्रवाभिसद्वेष्टितदामलीलेः पद्मोत्पलाच्छादितवक्रशोभैर्वसुन्धरेन्द्राः 1 स्नपयांबभूवुः ॥ ७१ ॥ उसके स्वच्छ सुन्दर धरातलपर नाना प्रकारके चित्र विचित्र मूँगे, मांती और मणियोंके द्वारा अनेक आकार के सुन्दर, सुन्दर चौक पुरे थे । इसके अतिरिक्त सब ओर रखे गये गमलों, लटकती हुई पुष्पमालाओं और चारों ओर लगे पुष्पवृक्षोंपर इधर से उधर उड़ते हुए भोरे सब ओर पराग उड़ाते थे। पराग ऐसा मालूम देता था मानों फूलोंकी भेंट है और उसके कारण धरातलकी शोभा अनेक गुनी हो गयी थी ।। ६८ ।। अभिषेक तथा पुण्यपाप फल चर्चा कुमार वराङ्ग स्वभावसे ही इतने अधिक सुन्दर थे कि कोई भी व्यक्ति रूप और कान्तिमें उनकी बराबरी न कर सकता था, तो भी अभिषेक, विवाह आदि मांगलिक कार्योंके कारण उस समय उनको लेप, उवटन आदि लगाये गये थे फलतः पूरा शरीर सौन्दर्य और स्वास्थ्यसे देदीप्यमान हो उठा था। अतएव जब वे मंगलविधिके लिए सिंहासनपर बैठाये गये तो ऐसे शोभित हुये मानो उदयाचलपर चन्द्रोदय हुआ हो ॥ ६९ ॥ कुमार वराङ्गके साथ-साथ संसारकी परम सुन्दरियाँ उपरिलिखित महाराज महेन्द्रदत्त आदिकी वपुष्मती प्रभृति राजकुमारियाँ, महाराज धृतिषेणकी कुलीन कन्या सुनन्दा तथा नगरसेठ धनदत्तकी ज्येष्ठ पुत्री भी उस विशाल सिंहासनपर विराजमान थी ॥ ७० ॥ सिंहासन के आसपास ही सोनेके बड़े-बड़े अभिषेक कलश रखे थे। कलशोंके निर्मल जलमें अनेक सुगन्धित पदार्थं घोले गये थे, उनके गलोंपर सुन्दर सुगन्धित मालाएँ लिपटी थी, और मुख श्वेत रक्त और नील कमलोंसे ढके हुए थे ॥ ७१ ॥ १. म शरीरोदय Jain Education International २. [ समं कुमारं दशभिवंराङ्गम् ] । ३. [ युग्मम् ] । For Private & Personal Use Only द्वितीय: सर्गः [३५] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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