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________________ बराङ्ग द्वितोयः चरितम् सर्गः RAITAMARPATRAPAIKAMARATHea नृपाजया राजगृहस्य मध्ये नरेन्द्रसूनोरभिषेचनाय । श्रीमण्डपं कामकरण्डकाख्यं सत् कारितं नेत्रमनोऽभिरामम् ॥ ६४ ॥ महेन्द्रनीलमणिभिविनद्धं' महीतलं हेममयी च भित्तिः । कपोतपाली रजतैरुपेता सौवर्णमन्तःफल प्रक्लप्तम ॥६५॥ स्तम्भास्तु सर्वे तपनीयगर्भा बहिबृहद्रत्नमणिप्रकल्प्याः । द्वारं सुबद्धं खलु सर्वरत्नैर्जाम्बूनदाविष्कृतमिन्द्रकूटम् ॥ ६६ ॥ क्वचित्क्वचिल्लम्बितहेममालं प्रवालरत्नातिमिश्रजालम् । मुक्ताकलापाश्चितदामलोलं रराज पर्यन्तविचित्रसालम् ॥ ६७ ॥ यौवराज्य-अभिषेक महाराज धर्मसेनने इसी अवसरपर वराङ्गका युवराज पदपर अभिषेक भी करनेका निर्णय किया था। अतएव उनकी आज्ञासे राजभवनके विशाल आंगनमें 'कामकरण्डक' नामका श्रीमंडप अत्यंत कलापूर्वक बनाया गया था। उसे देखते ही आंखें शीतल हो जाती थीं और मन मुग्ध हो जाता था ॥ ६४ ॥ उस 'कामकरण्डक' मण्डपका धरातल महेन्द्रनील आदि भाँति, भाँतिके मणियोंको जड़कर बनाया गया था, पूरी की । पूरी भित्तियाँ सोनेसे बनायी गयी थी, कपोतवाली ( छज्जा ) शुद्ध चाँदीसे बनी थी और भीतरकी पूरीकी पूरी छत शुद्ध सुवर्णसे गढ़ी गयी थी॥ ६५ ॥ श्रीमण्डपके सबही खम्भोंका भीतरी भाग तपाये गये सोनेसे ढाला गया था और उसका वाहरी भाग बड़े-बड़े रत्नों और मणियोंसे बनाया गया था। गोपुर या प्रधानद्वार, संसारके सवही मणि और रत्नोंसे उनके रंग तथा कान्तिका विचार करके अत्यन्त उचित रूपसे बनाया गया था और मध्याह्नके सूर्यके समान जगमगाता उन्नत शिखर जाम्बूनद सोनेसे बना था ।। ६६ ॥ उसमण्डपके चारों ओर अत्यन्त सुन्दर तथा दृढ़ परकोटा बना था, उसपर चारों ओर सोनेकी बन्दनवार लटक रही थी तथा इस बन्दनवारमें भी बीच-बीचमें मगा, मोती और मणि पिरोये गये थे। फलतः इनकी कान्ति सोनेकी कान्तिसे मिलकर सम्पूर्ण दृश्यको अद्भुत बना देती थी। इन्हीं विशेषताओंके कारण वह परकोटा श्रीमण्डपकी मोतियों से बनी माला समान मालम देता था॥ ६७॥ IMAIIMAHIPATHIPPIRSHASTRIPATHAHAHARPATIPAPA pesmaipedia-STHAHARA [३४] १. म विनन्दं । २. [प्रक्लृप्ताः ] । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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