SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 677
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बराङ्ग चरितम् तद्विप्रकारं मुनिभिः प्रदिष्टं सान्तर्बहिर्भेदविशेषयुक्त्या । आध्यात्मिकं भेदमुपैति षोढा बाह्य पुनः षड्विधमामनन्ति ॥ ७२ ॥ बहुप्रकारं हि तपोविधानं तद्विद्यमानाशयशुद्धिहेतोः । न्याय्यं हि दोषान्यतमप्रकोषे विशेष भैषज्य विधानदृष्टम् ॥ ७३ ॥ रागात्मकानामुपवासयोगाद्वेषान्वितानां च विविक्तवासः । ढवितानां मुनिभिः प्रणीतो ज्ञानोपयोगः सततं तपस्त्वम् ॥ ७४ ॥ महाव्रतान्यप्रतिमानि पञ्च पञ्चैव सम्यक्समितिप्रयोगाः । त्रिगुप्तयो या अवशं विधाय चारित्रमेतत्सकलं मुनीनाम् ।। ७५ ।। साधन तथा योग युक्तिके भेदसे वह अभ्यन्तर और बाह्य दो प्रकारका है । आध्यात्मिक तपके छह भेद हैं तथा बाद्य तपके इस विधि से छह विभाग हैं। उक्त बारह भेद स्थूल दृष्टिसे किये हैं वास्तव में तो अनशन, अवमौदर्य आदि प्रत्येक बाह्य तप तथा प्रायश्चित आदि प्रत्येक अभ्यन्तर तपके भी अनेक भेद होते हैं ॥ ७२ ॥ आत्मचिकित्सा विधि इस बहुमुख तपका चरम लक्ष्य एक हो है और वह है विद्यमान पापोंका विनाश। वात, पित्त तथा कफमें से किसी भी दोष प्रकुप्त हो जाने पर जिस तत्पराके साथ औषध उपचार आवश्यक होता है, उसी भाँति आत्मामें कोई दोष आनेपर तपरूपी उपचार ही सफल हो सकता है ।। ७३ ।। जिन मनुष्यों में अनुराग भाव बहुत प्रबल तथा जाग्रत है उन्हें उपवास करना साधक है। जिन्हें बात बात में कलह तथा द्वेष करनेका स्वभाव पड़ गया है उन्हें एकान्त स्थानपर निवास करना अनिवार्य है। तथा जो प्राणी सब दिशाओंसे मोहाक्लान्त हैं। उनके उद्धारका मार्ग ज्ञानोपयोग तथा सदा तपस्या करना ही है ।। ७४ ।। चारित्राराधना निर्ग्रन्थ मुनियोंके सकलचारित्रको निम्न विधियाँ है। सबसे प्रधान तो पाँचों अहिंसा आदि महाव्रत हैं जिनकी उपमा खोजना ही असम्भव है अप्रमत्त तथा सावधान होकर ईर्या आदिमें प्रवृत्त होने की अपेक्षासे ही समितियाँ भी पाँच हैं, मन, वचन तथा कायकी यथेच्छ प्रवृत्तियोंको नष्ट करके सर्वथा आत्माको वशमें कर देनेवाली गुप्तियाँ भी तीन हैं ॥ ७५ ॥ १. म न्यायं । २. मी ३. [ क्सयोगो ] । ४. म विभक्तवित्तः । ५. [ मोहान्वितानां ] । For Private & Personal Use Only Jain Education International एकत्रि सर्गः [ ६४४ ] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy