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________________ त्रिशः बराज चरितम् यत्राहतां जन्मपुराण्यभूवन्प्रवव्रजर्यत्र च लोकनाथाः । यत्रककैवल्यमभवतुल्यं यत्रास निर्वाणमृषीश्वराणाम् ॥४८॥ तांस्तांश्च देशानथ संविहृत्य विशुद्धवाक्कायमनःप्रयोगाः । समीक्षमाणाश्च तपोवनानि ववन्दिरे दुष्कृतपावनानि ॥ ४९ ॥ शय्यासनस्थानगतिक्रियासु निष्ठीवनोत्सर्गविधिष्वमूढाः । आदाननिक्षेपणभोजनेषु जन्तून रक्षः क्रियया समेताः ॥ ५० ॥ नैष्ठ्यपारुष्यनिरर्थकानि कार्कश्यपैशन्यविकारवन्ति । मर्मप्रहाराणि बचांसि वाचा न भाषमाणा यतयो विजहः ॥ ५१ ।। मन्चमायामाचरR तीर्थाटन जिस प्रदेश पर तीर्थंकर भगवानोंके जन्म स्थान होते थे उन नगरोंमें, अथवा संसारके हितैषी तीर्थंकरोंने जिन स्थानोंपर दीक्षा ग्रहण की थी, अथवा परम तपस्वी अर्हन्त भगवानको जिन पुण्य स्थानोंपर केवलज्ञानको प्राप्ति हुई थी अथवा जिस प्रातःस्मरणीय पवित्र धामसे ऋषियोंके भी आदर्श केवली तीर्थंकर मोक्षको पधारे थे, उन सब धन्य देशोंमें उन तपस्वियोंने विहार । किया था । ४८॥ उनके मन, वचन तथा कायकी चेष्टाएँ दिनों-दिन विशुद्धतर होती जाती थीं। जहाँ कहीं पर भी वे चतुर्विध संघकी निवासभूमि किसी तपोवन में पहुँचते थे, वहीं रुककर वन्दना करते थे क्योंकि वे स्थान ही आत्माओंके पापमलको धो कर दूर । करते हैं ।। ४९ ॥ किसी जगह बैठते हुए, लेटते हुए, आवश्यक कार्यके लिए स्थान करते समय, चलते समय, किसी भी चेष्टाको करते हुए, थूकने में, मलत्यागमें तथा अन्य आचरण विधियोंका अनुष्ठान करते समय, किसी वस्तुको उठाते हुए अथवा रखते समय तथा आहार ग्रहण करनेके अवसरपर वे जागरूक रहते थे और पूर्ण सावधानीसे जीवों की रक्षा करते थे, साथ ही साथ किसी भी आचारमें खोट न आने देते थे ॥५०॥ रागद्वेष विजयी वे सब मुनिराज न तो किसीको निष्ठुर तथा कठोर शब्द कहते थे, कभी निरर्थक एक शब्द भी उनके मुखसे नहीं निकलता था, कर्णकटु तथा चाटुकारिता मय वचन भूलकर भी उनकी जिह्वापर नहीं आ सकते थे। ऐसे शब्द जिन्हें सुनकर श्रोताके हृदयपर किसी भी प्रकारका आघात हो सकता था उनकी तो कल्पना ही उनके लिए अशक्य थी। इस प्रयत्नसे वचन गुप्तिका पूर्ण पालन करते हुए वे देशोंमें विहार कर रहे थे । ५१ ॥ HITIATRAIL ६१९) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education Interational
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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