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________________ द्वितीयः सर्ग: द्विजातिवक्त्रोद्गलितप्रलब्ध मुक्ताकलापच्छरितान्तरालाम् । मन्दानिलाकम्पिचलत्पताकामात्मप्रभाह्रपितसूर्यभासम् ॥५५॥ नानाप्रकारोज्ज्वलरत्नदण्डां विलासिनीधारितचामराह्वाम् । आरुह्य कन्यां शिबिकां पृथुश्रीः पुरी विवेशोत्तमनामधेयाम् ॥ ५६ ॥ श्रीधर्मसेनप्रहितेश्च दूनिवेदिताः प्रागवनीन्द्रचन्द्राः । आकृष्यमाणास्तु वराङ्गपुण्यैः प्रतस्थिरे स्वाभिरमा सुताभिः ।। ५७ ॥ सुवर्णकक्षोपहितान् गजेन्द्रान् रथांश्च नानाकृतिचित्रवर्णान् । सचामरापीलधरांस्तुरङ्गान्नृपाः समारुह्य पथि प्रजग्मुः ॥ ५८ ॥ कलश रखे गये थे, ऊपरका भाग पद्मराग मणियोंसे खचित था, ऊपर रखे गये जगमग कलश सर्वथा निर्दुष्ठ चांदीके बनाये गये थे ॥ ५४ ।। उसके ऊपरी भागमें मणियोंके पक्षी बने थे, जिनके मुखसे गिरते हुए मुक्ताफल भी उसमें चित्रित थे फलतः पालकीका मध्यभाग ऐसे मुक्ताफलोंसे व्याप्त था। उसके ऊपर लगे पताका धीरे धीरे बहती हुई हवाके झोंकोसे लहरा रहे थे, उसकी कान्ति और जगमगाहटके सामने सूर्यकी कान्ति भी लजा जातो थी ।। ५५ ॥ उसे उठानेके दण्डोंमें भी भांति-भांतिके जगमगाते हुए रत्न जड़े गये थे। उसके आसपास युवती सुन्दरियां चमर ढोरतो चलती थीं। इस प्रकारको महामूल्यवान पालकीपर अपनी पुत्रीको बैठाकर विपुल सम्पत्ति और कान्तिके अधिपति महाराज धृतिषणने उत्तमपुरमें प्रवेश किया जो कि 'यथानाम तथा गुणः' था ।। ५६ ।। अन्यराजा-आगमन महाराज धर्मसेनने पहिले जिन राजदूतोंको सब तरफ भेजा था उनसे ही कुमार वराङ्गके व्याहका समाचार जानकर, चन्द्रमाके सामन सर्वप्रिय तथा प्रजाके हितैषी बड़े, बड़े अन्य राजा लोग भो मानो वराङ्गके पुण्यसे प्रेरित होकर ही अपनी अपनी अत्यन्त गुणवती तथा सुन्दरी कन्याओंको लेकर उत्तमपुरके लिए चल दिये थे। उनमेंसे कई सोनेकी झूल और हौदेसे सजे विशालकाय श्रेष्ठ हाथियोंपर सवार थे ॥ ५७।। तो दूसरे नाना रंगोंको चित्रकारोसे भूषित अनेक प्रकारके रथोंपर विराजमान थे और अन्य राजा लोग चामर, मुकुट आदिसे सुशोभित उत्तम घोड़ीपर चढ़कर उत्तमपुरके रास्तेपर चले जा रहे थे ।। ५८ ।। १. [ °ग लितप्रलम्ब ]। २. [ °चामराठयाम्]। ३. [ आरोह्य ।। ४. म नागाकृति । emperenceTRIHARANPATHP-MAHARMAWEIPAHPSI-APARIES [३२] Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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