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________________ इत्येवमुक्त्वा नृपतिः सहर्षो दित्सुः सुतामुत्पलपत्रनेत्राम् । पुरोहितामात्यसमान्विदग्धानाह्वाययाहार्यविदो बभूव ॥५०॥ समेत्य तैमन्त्रितमन्त्रिभिश्च कन्याप्रदानं प्रति निश्चितार्थः । द्वितीयः यथाधिकाराधिकृतान्स भृत्यान् शशास कल्याणमहोत्सवाय ॥५१॥ सर्गः कृत्वा स कल्याणविधि विधिज्ञो दरिद्रदीनेषु धनं विसृज्य । स्वया विभूत्या परया नरेन्द्रः कन्यां पुरस्कृत्य मुदा प्रतस्थे ॥५२॥ जलप्रभाभिः कृतभूमिभागां प्राचीनदेशोपहितप्रवालाम् । सर्वार्जनोपात्तकपोतपाली वैड्र्यसव्यानवती पराया॑म् ॥ ५३॥ हेमोत्तमस्तम्भवतां विशालां महेन्द्रनीलप्रतिबद्धकुम्भाम् । तां पद्मरागोपगृहीतकण्ठां विशुद्धरूपोन्नतचारुकूटाम् ॥ ५४॥ इस प्रकार कमलकी पंखुड़ियोंके समान ललित नेत्रवती पुत्रीके कन्यादान करनेके निश्चयको प्रकट करके राजाने अपने पुरोहित तथा इन्हींके समान अन्य सच्चे हितैषी और विश्वस्त सम्बन्धियोंको बुलाया तथा उन सबको अपनी अपनी सम्मति देनेके लिए ही उक्त अभिलाषा उनके सामने उपस्थित कर दी थी ॥ ५० ॥ उक्त विश्वस्त सम्बन्धियों तथा मंत्रियोंके साथ बैठकर विचारकर चुकनेपर जब राजाने यही निर्णय किया कि राजकुमारीका विवाह कुमार वराङ्गके साथ ही करना है, तो उनसे तुरन्त हो सव राजकर्मचारियोंको उनके पद और योग्यताका ध्यान रखते हुए विवाहके कल्याणमय महोत्सवकी तैयारियां करनेकी आज्ञा दी ।। ५१ ।। वरनगर-प्रस्थान __ समस्त धार्मिक और सामाजिक विधि-विधानोंके विशेषज्ञ तथा अनुयायी राजाने पिताके घरकी सबही रीतियों और । संस्कारोंको पूरा करके निर्धन और दीनदुखियोंको मनभर दान दिया। इसके बाद अपार सम्पत्ति और ठाटबाट के साथ राजकुमारीको लेकर उसने उत्तमपुर को प्रस्थान किया ।। ५२ ।। महाराजधृतिषेणने जिस पालकीपर राजकुमारीको बैठाया था उसका धरातल पानीके समान रंगोंके द्वारा बनाया गया था, फलतः देखते ही जलकुण्डका धोखा लगता था, उसकी वन्दनवारमें लगे हुए मूगे प्राचीन तथा दूर देशोंसे लाये गये थे, उसके [३१] कबूतरों युक्त छज्जेके बनानेमें तो सारे संसारकी कमाई ही खर्च हो गयी थी, उसकी छत वैडूर्यमणियों से ही बनायी गयी थी।॥५३॥ उस विशाल पालकीके सव हो खम्भे उत्तम थे क्योंकि वे शुद्ध सोनेसे ढाले गये थे। और उनपर महेन्द्र नील मणिकेत. १. [ आह्वाय्य ( आहूय वा ) बह्वयं विदो ] । For Private & Personal Use Only च्यानलमाSALARITRIES www.jainelibrary.org Jain Education international
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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