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________________ ___अष्टाविंशः सर्गः अथान्यदानर्तपुराधिपस्य संप्राप्तकल्याणफलोदयस्य । नित्यप्रवृत्तोत्सवसत्क्रियस्य सबन्धुमित्रार्थिजनप्रवस्य ॥१॥ अष्टाविंशः धर्मार्थकामोन्नतिनायकस्य गुणाकरस्याप्रतिपौरुषस्य । सर्गः नपस्य तस्याग्रमहामहिष्या बभूव गर्भोऽनुपमाहदेव्याः॥२॥ जाते च गर्भ जगतस्तदानीमभूतभूतप्रमदोऽतिमात्रम्। विनाशमीयुः पुनरीतयश्च प्रशान्तवैरा रिपवो वभूवः ॥ ३ ॥ ततः प्रपूर्णे नवमे च मासे प्राचीव दिग्भानुमुदप्रभासम् । देवी पृथुश्री कनकावदातं कुलध्वजं सा सुषुवे कुमारम् ॥ ४ ॥ अष्टाविंश सर्ग पुत्रजन्म आनतंपुरके अधिपति सम्राट बरांगकी समस्त अभिलाषाएँ ही पूर्ण नहीं हुई थीं, अपितु संसारमें जितने भी अभ्युदय तथा श्रेय हो सकते थे वे सब अपने आप ही उसकी शरणमें आ पहुंचे थे। वे प्रतिदिन प्रातःकालसे संध्या समयतक सत्कार्य तथा । पुण्यमय उत्सवोंमें ही व्यस्त रहते थे । अपने स्नेही बन्धु-बान्धवों, अभिन्न हृदय मित्रों तथा अभावग्रस्त अर्थिजनों ( याचकों ) को उनके पद, मर्यावा और आवश्यकताके अनुकूल भेंट, आदि देनेमें वे कभी प्रमाद न करते थे ॥१॥ उनके संरक्षण में पूरा साम्राज्य परस्पर विरोधको बचा कर धर्म-अर्थ-तथा काम पुरुषार्थोंका विकास कर रहा था। समस्त गुणोंको खान सम्राट जनताके आदर्श थे तथा उनका पौरुष अनुपम था। ऐसे सर्व सम्पन्न कर्त्तव्यपरायण सम्राट वरांगकी | पट्टरानी साम्राज्ञी श्रीमती अनुपमादेवीके उक्त धर्म महोत्सवके कुछ ही दिन बाद गर्भ रह गया था ॥२॥ साम्राज्ञीको गर्भ रहते ही उस समय समस्त राष्ट्रोंमें कुछ ऐसा परम उत्कृष्ट प्रमोद छा गया था जैसा कि उसके पहिले कभी किसीको हुआ ही न था । अतिवृष्टि, चौर्य, मरी, आदि छहों ईतियोंका कहीं पर चिन्ह भी शेष न रह गया था। केवल शत्रुओं। में ही नई अपितु जिन पुरुषों अथवा प्राणियोंमें स्वाभाविक वैर था उनका वह वैरभाव भी उस समय लुप्त हो गया था ॥३॥ इस क्रमसे जब गर्भ अवस्थाके पूर्ण नौ मास समाप्त हो गये तब महारानीका स्वाभाविक सौन्दर्य मातृत्वके भारसे आनत मंडित होकर अवर्णनीय विशाल शोभाको प्राप्त हुआ था। शुद्ध स्वर्णके सदृश निर्दोष कान्तिमान कुलकी ख्याति और १.[ °मभूदभूत°]। २.[ पृथुश्री.] । SATARATSWASTHAHARASTRAPARIPATHIPASHRAM DURG Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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