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________________ HA वराङ्ग चरितम् मल्लिश्च पाश्वौँ वसुपूज्यपुत्रोऽप्यरिष्टनेमिश्च तथैव वीरः। कौमारकाले वयसि प्रयाता भुक्त्वा भुवं ते प्रययश्च शेषाः ॥९॥ अरिष्टनेमिर्वृषभो जिनेन्द्रः स वासुपूज्यश्च जिनो महात्मा । पल्यवृतः सिद्धिमुपागतास्ते स्थित्यैव शेषाः परिनिर्वताः स्युः ॥१०॥ कैलासशैले वृषभो महात्मा चम्पापुरे चैव हि वासुपूज्यः । दशाहनाथः पुनरूजयन्ते पावापुरे श्रीजिनवर्धमानः ॥ ९१॥ शेषा जिनेन्द्रास्तपसः प्रभावाद्विधूय कर्माणि पुरातनानि । धीराः परां निवृतिमभ्युपेताः संमेदशैलोपवनान्तरेषु ॥ ९२॥ सप्तविंशः सर्गः P RAwammeMITREATHASHASTRamesapSPARDAre बालब्रह्मचारी घोर तप करके अन्तमें मोक्ष महापदको प्राप्त हुए चौवोतों तोर्थङ्करोंमें महाराज वसुके जगत्पूज्य पुत्र बारहवें तीर्थङ्कर श्री वासुपूज्य उन्नीसवें तीर्थङ्कर श्री मल्लिनाथ, बाईसवें तीर्थङ्कर यादवनाथ श्री नेमि कुमार, तेईसवें तीर्थङ्कर पार्श्वप्रभु तथा अन्तिम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामो, इन पाँचों तीर्थंकरोंने मनुष्य जोवनके परम प्रलोभन गृहस्थाश्रमको ठुकरा कर कुमार अवस्थामें ही जिनदीक्षा ग्रहण की थी। शेष सब ही भोग विलास करके ही विरक्त हुए थे ॥ ८९ ।। निर्वाणमुद्रा जिनेन्द्रोंके आदर्श आदि पुरुष श्री ऋषभदेव, बारहवें तीर्थङ्कर वासुपूज्य तथा कामजेता भगवान नेमिनाथ इन तीनों महात्माओंको पद्मासन ( पालथी ) अवस्थामें ही मुक्ति प्राप्त हुई थी। इनके अतिरिक्त अजितप्रभु आदि शेष इक्कीस तीर्थङ्करोंको खड़े-खड़े ( खड्गासनसे ) हो निर्वाण प्राप्त हुआ था । ९० ।। निर्वाणक्षेत्र प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव कैलाशगिरिके शिखरसे मोक्ष गये हैं। बारहवें तीर्थकर भगवान वासुपूज्य चम्पा देश (मन्दारगिरी) से मुक्ति गये हैं। दशाह ( दशार्ण ) देशके राजकुमार यादवनाथ भगवान नेमिकुमारको उर्जयन्तगिरि (गिरनार ) से निर्वाण-प्राप्ति हुई थी तथा अन्तिम तीर्थङ्कर नाथपुत्र वर्द्धमानका पावापुरोके पद्मसरसे हो निर्वाण कल्याणक हुआ था ॥९१॥ शेष बीसों महाराजोंने उग्र तपस्या करके ऐसी आत्मशुद्धि प्राप्त की थी, कि उसके प्रभावसे उनके अनादिकालसे बँधे । कर्म भी नष्ट हो गये थे । फलतः उनके आध्यात्मिक बन्धन विगलित होते ही वे सबके सब धीर वीर आत्मा परमपूज्य सम्मेदाचलके अलग-अलग शिखरोंपरसे मोक्ष महालयको प्रयाण कर गये थे ।। ९२ ।। ७० For Private & Personal Use Only ५५३ ॥ Jain Education Intemational www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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