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सप्तविंशः
चरितम्
अरिष्टनेमिः किल शौर्यपुर्या' वीरस्तथा कुण्डपुरे बभूव । अरश्च कुन्थुश्च तथैव शान्तिस्त्रयोऽपि ते नागपुरे प्रसूताः॥८५॥ इक्ष्वाकुवंश्याः खलु षोडशैव चत्वार एवात्र कुरुप्रवीराः। द्वौ चोपदिष्टौ हरिवंशजातावुग्रस्तथैकः किल नाथ एकः ॥ ८६ ॥ सुवर्णवर्णः खलु षोडशैव चन्द्रप्रभौ द्वौ च जिनौ जिताशौ । द्वौ द्वौ च संध्याउजनतुल्यवर्णों द्वावेव दूर्वाङ्करकाण्डभासौ ॥७॥ अरिष्टनेमिमुनिसुव्रतश्च द्वावप्यमू गौतमगोत्रजातौ । शेषा जिनेन्द्रा ऋषभादिवर्याः ख्याताः पुनः काश्यपगोत्रवंश्याः ॥८॥
सर्गः
भगवान अरनाथ, कुन्थुनाथ तथा शान्तिनाथ प्रभुका जन्मस्थान अत्यन्त विख्यात नागपूर था । बाईसवें तीर्थङ्कर यादवपति श्री नेमिनाथने शौर्यपुरीमें ही सबसे पहिले अपने कमल नयनोंको खोल कर माता शिवदेवीके यौवन तथा कुक्षिको सफल किया था। भगवान महावीरने सबसे पहिले सूर्यका प्रकाश कुण्डलपुरमें ही देखा था ।। ८५ ।।
तीर्थकर वंश परमपूज्य चौबीसों तीर्थंकरोंमेंसे सोलहको जन्म देनेका सौभाग्य जगद्विख्यात इक्ष्वाकु वंशको ही है, शेष आठमें से चार धर्म प्रवर्तकोंका पितृवंश वोरोंका वंश कुरुवंश ही था । शेष चारमें से दो ने हरिवंशको पवित्र करके उसका माहात्म्य बढ़ाया था। शेष दो में से एकने उग्रवंशके प्रतापको उग्र किया था तथा शेष अन्तिम तीर्थंकर महावीरने नाथवंशको सनाथ किया था ॥८६॥
शरीरवर्ण समस्त आशा पाशको छिन्न-भिन्न करनेवाले दो चन्द्रप्रभ तथा पुष्पदन्त तीर्थंकरोंके शरीरका रूप चन्द्रमाकी कान्तिके समान था। दो तीर्थंकरों ( पद्मप्रभ-वासुपूज्य ) के सुन्दर शरीरका वर्ण संध्याको लालिमाके समान ही ललाम था तथा दूसरे दो दो प्रभुओं ( मुनिसुव्रत-नेमिनाथ ) को कायाकी कान्ति मेघोंके समान श्याम थी। सुपार्श्व-पार्श्वनाथकी देहछवि नूतन जात दूबके अंकुरोंके समान हरी थी तथा शेष सोलह तीर्थंकरोंके वज्रबृभनाराचसंहनन युक्त शरीरका रूप सोनेके समान था॥ ८७ ।
तीर्थकर गोत्र बीसवें तीर्थङ्कर भगवान मुनिसुव्रतनाथ तथा अहिंसावतार यादवपति श्री नेमिनाथ, ये दोनों महापुरुष ही ऐसे थे । जिन्होंने गौतम गोत्रमें जन्म लिया था। इन दोनों प्रभुओंके अतिरिक्त शेष ऋषभदेव आदि सबही तीर्थङ्करोंने काश्यप गोत्रकी ही । ख्यातिको बढ़या था ।। ८८ ।।
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