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________________ वराङ्ग सप्तविंशः सर्गः चरितम् आद्यो जिनेन्द्रस्त्वजितो जिनश्च अनन्तजिच्चाप्यभिनन्दनश्च । सुरेन्द्रवन्धः सुमतिर्महात्मा साकेतपुर्या किल पञ्च जाताः ॥१॥ कोशावकश्चैव' हि पद्मभासः श्रावस्तिकः स्याज्जिनसंभवश्च । चन्द्रप्रभश्चन्द्रपुरे प्रसूतः श्रेयाज्जिनेन्द्रः खलु सिंहपुर्याम् ॥ २ ॥ वाराणशौ तौ च सुपार्श्वपाश्वौं कार्कदिकश्चापि हि पुष्पदन्तः । श्रीशीतलः खल्वथ भद्रपुर्यां चंपापुरे चैव हि वासुपूज्यः ॥ ८३ ॥ काम्पिल्यजातो विमलो मुनीन्द्रो धर्मस्तथा रत्नपुरे प्रसूतः । श्रीसुव्रतो राजगृहे बभूव नमिश्च मल्लिमिथिलाप्रसूतौ ॥ ४ ॥ श्री ऋषभदत्त, सुदत्त, वरदत्त तथा धर्मदेवने भगवान मुनिसुव्रतनाथ, नमिनाथ, नेमिनाथ तथा पार्श्वप्रभुके तपको बढ़ाया था। जब भगवान महावीर दानतीर्थको प्रवर्तन करानेको अभिलाषासे चर्याको निकले उस समय महात्मा बकुलने उनका प्रतिग्रहण करके जगतको दानधर्मको शिक्षा दी थी ।। ८० ।। जन्मनगरी भगवान महावीरके समयमें उत्तरकोशल नामसे विख्यात देशकी राजधानी साकेतपुरी ( अयोध्या ) प्रथम जिनेश्वर श्री ऋषभदेव, अजितजिन, चौदहवें तीर्थंकर अनन्तनाथ, चौथे तीर्थंकर अभिनन्दनाथ, देवों तथा देवेन्द्रोंके परमपूज्य महात्मा सुमतिनाथ, पांच-कल्याणोंके अधिपति इन पाँचों जिनराजोंने जन्मग्रहण करके उसकी शोभा तथा ख्यातिको बढ़ाया था ॥ ८१॥ षष्ठ तीर्थकर भगवान पद्मप्रभ कौशाम्बी (कोसम-जिला इलाहाबाद ) में जन्मे थे। अष्टकमजेता भगवान शंभव । श्रावस्ती नगरीमें उत्पन्न हुए थे। भगवान चन्द्रप्रभ गंगाके किनारे स्थित चन्द्रपुरोमें जन्मे थे, ग्यारहवें तीर्थङ्कर श्री श्रेयांसनाथके । जन्म महोत्सवका समारोह सिंहपुर ( सारनाथ ) में हुआ था । ८२॥ भगवान सुपार्श्वनाथ तथा पार्श्वनाथके गर्भ तथा जन्म कल्याणकोंको लीलाका क्षेत्र काशी ही बनी थी। श्री पुष्पदन्त । प्रभुको जन्मस्थली काकंदीपुरी थी। परम पवित्र भद्रपुरीमें भगवान शीतलनाथने जन्म लिया था ॥ ८३ ॥ तथा भगवान वासुपूज्यने चम्पापुरीके महत्त्वको बढ़ाया था। भगवान विमलनाथ कम्पिलापुरीमें उत्पन्न हुए थे। । केवलियोंके भी गुरु श्री धर्मनाथ प्रभुने रत्नपुरमें जन्म लिया था। बोसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथने राजगृहके माहात्म्यको बढ़ाया था। भगवान नमिनाथ तथा मल्लिजिनेन्द्रका जन्म-कल्याणक मिथिलापुरीमें हुआ था।। ८४ ॥ । १. [ कौशाम्बिक°]। २. म वाणारसौ। [५५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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