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________________ TARATHee चरितम् सहस्र पूर्वाद्विमलस्त्वरान्तादथारुणाख्यात्खल पुष्पदन्तः। प्रैवेयकाधः प्रथमाद्विमानादभ्यागतः संभबसंयतेन्द्रः ॥ ६९॥ सुपाश्र्वनामा किल मध्यमाख्याध्वं च पद्मप्रभ आययौ सः। इत्यस्ता कारणभावितानामभ्यागतिर्वः कथिता मयेयम् ॥७०॥ आद्यस्तु नाभिजितशत्रुनामा तृतीय आसीज्जितराजसंज्ञः । स्वयंवरश्चैव हि मेघराजः स्यात्सुप्रतिष्ठश्च महाबलश्च ॥ ७१ ॥ सुग्रीवनामा सुदृढो रथान्तो विष्णुर्वसुः स्यात्कृतवर्मसंज्ञः । श्रीसिंहसेनस्त्वथ भानुराजः स विश्वसेनः किल शौर्यधर्मा ॥ ७२१॥ सप्तविंशः सर्गः MARATHIMITRAPATH भगवान पुष्पदन्त भी इसी आरुण स्वर्गसे आकर पृथ्वीपर जन्मे थे । तीर्थंकर रूपसे जन्म लेनेके पहिले विमलनाथ तीर्थकर शतार स्वर्गमें थे तथा अरनाथ इसके आगेके सहस्रार स्वर्गमें थे। नव वेयकोंके नीचेके प्रथम विमानसे भगवान शंभवनाथ पधारे थे जिन्होंने इन्द्रियों और नो इन्द्रियोंको सरलतापूर्वक ही संयत कर दिया था ।। ६९ ॥ सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ प्रभु मध्यम ग्रीवेयक विमानसे आ कर काशीमें जन्मे थे। छठे तीर्थकर श्री पद्मप्रभदेवने ऊर्ध्व ग्रेवेयककी आयु समाप्त करके इस धराधामको सुशोभित किया था। इस क्रपसे चौबीसों तीर्थकर कहाँसे आकर तीर्थकररूपमें उत्पन्न हुए थे, यह मैंने आपको बतलाया है। ये चौबोसों महापुरुष ऐसे थे जिन्होंने षोडश भावनाओंका ध्यान करके उक्त पदको प्राप्त किया था ।। ७० ॥ आदिपुरुष ऋषभनाथजीके पिता श्री नाभिराज थे। दूसरे तीर्थंकर श्री अजितप्रभुके पिता श्री जितशत्र थे। तीसरे तीर्थकरके पूज्य पिताका प्रातःस्मरणीय नाम जितराज था। चौथे तीर्थंकर अभिनन्दननाथके पूज्य पिता स्वयंवर महाराज थे। महाराज मेघराजसे पांचवें तीर्थकरका जन्म हुआ था ।। ७१ ॥ तीर्थकर जनक भगवान पद्मप्रभ तथा सुपार्श्वनाथके परमपूज्य पिता क्रमशः महाराज महाबल तथा सुप्रतिष्ठ थे। श्री पुष्पदन्त भगवानके पिता महाराज सुग्रीव थे। भगवान शीतलनाथ महाराज दृढ़रथके आत्मज थे । महाराज विष्णुके पुत्र ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयान्सनाथ थे । भगवान वासुपूज्यके पूज्य पिता महाराज वसु थे । महाराज कृतवर्मके पुण्य प्रतापसे उन्हें विमल प्रभु पुत्ररूपमें प्राप्त हुए थे । महापुरुष सिंहसेन, भानुराज, विश्वसेन तथा शौर्यधर्म क्रमशः भगवान अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ तथा कुन्थुनाथके पिता थे ।। ७२ ॥ १.मराजहंसः । [५४८] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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