SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 579
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तर्विशः शान्तेऽन्तरं प्रोक्तमयापल्यं कोटीसहसोनकृतं समानम् । अवर्षपल्यं किल कौन्य तत्कोटोसहस्रकारान्तर' स्यात् ॥११॥ लक्षाहताः षण्णवकास्तु वर्षाः बरेव वर्षास्तु नमस्तु पंच । सहस्रताब्यास्तु पुनस्यशोतिरर्धाष्टमेश्चापि शतैः समेताम् ॥ २॥ पंचाशता द्वेचशते समेते पाश्र्वान्तरं तं कषितं यथावत्। त्रिसप्तसंख्यं च सहस्रमेकं वीरस्य तीर्यान्तरमुक्तमेतत् ॥ ६॥ चतुर्थभागोऽथ पुद्विभागः पावोनभागः परिपूर्णभागः। पादोनकश्चापि पुनविभागः पल्यस्य तस्यापि चतुर्थकश्च ॥ ६४॥ शेष अन्तराल शान्ति-कुन्थुनाथ प्रभुके बीच में जो अन्तराल पड़ा था उसका प्रमाण आधा पल्य है। एक सहस्र करोड़ वर्ष घटा देनेसे चौथाई पल्यमें जो शेष रह जाय वही सतरहवाँ अन्तराल था। श्री कुन्थुनाथ प्रभु तथा अरनाथके बीचमें यही एक पल्यके आधेके आधा (हजार कोटि वर्ष हीन चौथाई पल्य ) अन्तराल पड़ा था। इनके बाद जो अठारहवाँ अन्तराल पड़ा था वह केवल एक सहस्र करोड़ वर्ष ही था ।। ६१ ॥ एक लाख गणित चउअन वर्ष अर्थात् चउअन लाख वर्षका मल्लिनाथ तथा मुनिसुव्रतनाथके बीचमें अन्तराल पड़ा था। भगवान मुनिसुव्रतनाथके निर्वाणके छह लाख वर्ष बाद श्री नमिनाथका जन्म हुआ था। इनके तथा नेमिनाथके बीच में केवल पाँच लाख वर्षका ही अन्तराल पड़ा था। यादवपति श्रोनेमिनाथ भगवानके निर्वाण (गिरिनारसे मुक्ति पधार जानेपर ) एक हजार | गुणित तेरासी गुणित हजार वर्ष युक्त आधा कम आठ सौ ( ८३७५० वर्ष ) वर्ष बाद ।। ६२ ॥ काशोमें श्रीपाश्र्वनाथप्रभुका आविर्भाव हुआ था। भगवान महावीर पार्श्वनाथ प्रभुके निर्वाणके पचास अधिक अधिक दो सौ वर्ष बाद हुए थे । भगवान महावीरके तीर्थका काल सात गणित तोन अर्थात् इक्कीसमें एक सहस्रका गुणा करनेपर जो, ( इक्कीस सहस्र ) आवे उतने वर्ष परिमाण है ।। ६३ ।। धर्मोच्छेद काल एक पल्यका चौथाई भाग, पल्यके दो भाग ( आधा पल्य ), एक चौथाई कम अर्थात् तीन चौथाई पल्य, पूराका पूरा । पल्य, फिर एक चौथाई कम पल्य = तीन चौथाई पल्य, फिर उसके दो भाग अर्थात् आधा, इसके बाद पूर्ववत् फिर पल्यका चौथाई भाग ये सात समयके प्रमाण इसलिए बताये हैं कि ।। ६४ ।। १.म मतान्तरं स्यात् । २.म शनैः। ३. म पञ्चाशताटे । [ m] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy