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________________ आद्यस्त्रिपिष्टश्च ततो द्विपिष्टस्तस्मात्स्वयंभूः पुरुषोत्तमश्च । नसिंहनामापि च पुण्डरीको दत्तश्च नारायणकृष्णसाहः॥ ४२ ॥ गुणैरुपेतो विजयोऽचलश्च धर्गस्ततोऽभूदय सुप्रभश्च । ततः सुदृष्टोऽपि च नन्दिनामा स्यान्नन्दिमित्रश्च हि रामपौ ॥ ४३ ॥ ग्रीवोऽश्वपूर्वस्त्वष तारकइच समेरको बै मधुकैटभश्च । ततो निशुम्भो बलिपार्थिवश्च प्रह्लादको रावणकृष्णशत्रू ॥ ४४ ॥ सप्तविंशः सर्गः नौ वासुदेव ( नारायण) इस युगके सर्वप्रथम वासुदेवकी ख्याति त्रिपिष्ट नामसे थी। उनके उपरान्त द्विपिष्ट दूसरे वासुदेव हुये थे, तीसरे वासुदेव को जनता स्वयंभू नामसे जानती थीं। चतुर्थ वासुदेवको पुराणकारोंने पुरुषोत्तम संज्ञाके द्वारा उल्लेख किया है। पांचवें वासुदेव श्रीपुरुष-सिंह 'यथा नाम तथा गुणा' थे। छठे वासुदेव श्री (पुरुष ) पुण्डरीक थे। इनके उपरान्त श्रीपति-(पुरुष ) दत्त तथा नारायण ( लक्ष्मण ) क्रमशः सातवें आठवें वासुदेव थे तथा श्रीकृष्णजी अन्तिम ( अर्द्ध चक्री) वासुदेव थे ॥ ४२ ॥ प्रथम नारायण श्री विजय गुणोंके भण्डार थे, उनके उपरान्त अचल दूसरे नारायण हुये थे । अचलके बाद काफी समय बीत जानेपर नारायण श्री (सु-) धर्मका आभिर्वाव हुआ था। इनके भी इस संसारसे सिधार जानेके बाद चौथे नारायण सुप्रभ की प्रभासे यह देश भासित हो उठा था। इसके बाद भरतक्षेत्र पांचवें नारायण श्री सु-दष्ट (-दर्शन ) की क्रीड़ास्थली बना था। छठे नारायणका नाम नन्दि था, सातवें नन्दिमित्र नामसे ख्थात थे, आठवें सुप्रसिद्ध राम थे तथा अन्तिम नारायणका नाम श्री पद्म (बलदेव ) था ॥ ४३ ॥ [५४१] प्रति नारायण प्रथम प्रतिनारायणके नाममें ग्रोवशब्दके पहिले अश्व आता था अर्थात् उनका नाम अश्वग्रीव था। दूसरे महापुरुष तारक थे । तोसरे प्रतिनारायण समेरक ( मेरक ) नामसे ज्ञात थे। चौथे मधुकैटभकी ख्याति भी कम नहीं है। इनके इस संसार M से सिधार जानेके बहुत समय बाद निशुम्भका आतंक फैला था। राजा बलिका तो कहना हो क्या है। प्रह्लाद (प्रहरण) सातवें प्रतिहारायण थे। रावण रामके शत्रु थे तथा श्रीकृष्णके प्राण वियोगके कारण श्री जरतसिंध अन्तिम प्रतिनारायण थे ॥४४॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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