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________________ वराङ्ग चरितम् सप्तविंश सर्गः कृतिस्तु तस्यैव हि पूर्वमेकं पूर्वाङ्गमाहुः कृतिताडितं तत् । तेनाहतं तच्च हि सर्वमेकं' सर्वाहतं चापि [५] नामाहुः ॥९॥ ततः परं तस्य परस्परेण गुण्यं च विन्द्याद्गुणकारकं च । तेषां तु संज्ञाः क्रमतः प्रवक्ष्ये पृथक्पृथक्पूर्वमुनिप्रणीताः ॥ १० ॥ ततो नतं तन्नालनाङ्गमस्मात्ततश्च भूयो नलिनं निराहः। ते द्वे महाशब्दयते च पूर्वे पद्मं ततः स्यात्कमलं च तस्मात् ॥ ११ ॥ ततः परं तत्कुमुदं तुटीयं ततश्च भूयोऽथ टटं निराहः। ततश्च विद्यां डमन तथाहं मह ततस्त्यात्प्रयु तं प्रतय॑म् ॥ १२ ॥ ELEURREZZARTISIमाचारमा lpersweSTHHTHA e गणनाक्रम उसकी ( पूर्वांगकी ) हो एक कृति ( वर्ग-बीस गुना ) को पूर्व कहते हैं तथा पूर्व में कृतिका गुणा करते पूर्वांग हो जाता है। एक पूर्व में एक पूर्वांगका गुणा कर देनेसे एक सर्व आता है तथा एक सर्व में पूर्वांगका गुणा करनेसे एक धनांग होता है ।। ९॥ इसके आगे यही नियम समझना चाहिये कि अन्तिम संख्या ( गुण्य ) में उससे पहिलेकी संख्या (गुणक) का गुणा करने से आगे-आगेके प्रमाण निकल आते हैं। इस विधिसे जो समयकी संख्याएँ निकलती हैं उनके नामोंको इसके बाद उसी उसी ढंग तथा क्रमसे कहता हूँ कि जिस क्रमका अनुसरण करके तपोधन ऋषियोंने समस्त संख्याओंके अलग-अलग प्रमाण निकाले थे ॥१०॥ पर्वमें धनांगका गुणा करनेपर 'नत' होता है, नतके बाद 'नलिनांग' प्रमाण आता है, इसके आगे उक्त प्रक्रियाका अनुसरण करनेपर 'नलिन' होता है । इसके उपरान्त 'पद्म' प्रमाण निकलता है । पद्मके बाद 'महापद्म' निकलता है । पद्म तथा महापद्मका गुणा करनेपर 'कमल' प्रमाण निकलता है ।। ११ ॥ महापद्ममें कमलका गुणा करनेपर जो प्रमाण आता है उसकी संज्ञा 'कुमुद' है। कमल और कुमुदका गुणा करनेपर 'तुटीय' होता है । कुमुद तथा तुटीयका गुणा करनेपर जो प्रमाण होता है उसे 'टट' कहा है। इसके आगे उक्त विधिसे ही विद्या, डमन, अहे, मह ( अथवा महत् ) आते हैं। इसके आगे जो संख्या आयी है उसे 'प्रयुत' नाम दिया गया है ।। १२ ।। मामाne मन्च १.क पर्वमेकं । २.क दमनं। ३.क तदाहं । ४. [ महत्ततः स्यात् ] । Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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