SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 565
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वराङ्ग चरितम् एको मुहूर्तः खलु नाडिके' द्वौ त्रिशन्मुहूर्ता दिनरात्रिरेका । त्रिपञ्चस्तैर्दिवसैश्च पक्षः पक्षद्वयं मासमुदाहरन्ति ॥ ५ ॥ ऋतुस्तु मासद्वय एक उक्त ऐषां त्रयं स्यादयनं तथैकम् । वर्ष तथा द्वे अयने वदन्ति संख्याविभागक्रमकौशलज्ञाः ॥ ६ ॥ दशाहतां वृद्धिमतः परं तु संख्यां प्रवक्ष्यामि यथाभिधानाम् । एकं दशैवाथ शतं सहस्रं दशाहतं तद्धघुतं वदन्ति ॥ ७ ॥ दशाहतं तं स्वयुतं हि लक्ष्या शताहतां तां च वदन्ति कोटीम् । लक्ष्या ह्यशीति त्वधिका चतुर्भिः पूर्वाङ्गमेकं मुनिभिः प्रदिष्टम् ॥ ८ ॥ कालवर्णन लवके प्रमाणसे आठ युक्त तीस अर्थात् अड़तीस ' [ अड़तालीस ] लवोंसे कुछ अधिक समय तक बीत जानेपर एक मुहूर्त होता हैं ॥ ४ ॥ एक मुहूर्त दो नाड़ीके बराबर होता है। एक दिन तथा रात्रिमें कुल मिलाकर तीस मुहूर्त होते हैं । पाँच दिन-रात के प्रमाण समय में तीनका गुणा करनेपर अर्थात् पन्द्रह दिन-रातका एक पक्ष होता है, तथा मास उसे कहते हैं, जिसमें दो पक्ष ( पखवारे) अथवा तीस दिन-रातका बीते हों। एक ऋतुमें दो मास होते हैं ॥ ५ ॥ समय विशेषज्ञोंका कथन है कि तीन ऋतुएँ वोत जानेपर अयन ( सूर्य की दक्षिण तथा उत्तर गति ) होता है। दो पूरे अयन समाप्त होनेपर एक वर्षं होता है। इस विधिसे समयका विभाग करके विशेषज्ञोंने समयके परिणामको निश्चित करने का प्रयत्न किया है ।। ६ ॥ इसके आगे आचार्योंने जो प्रमाण दिये हैं वे सब एक दूसरेसे ( अथवा पहिलेसे अगला ) दश गुने हैं क्योंकि ऐसा करने से संख्या देने में सरलता रहती है। एक प्रारम्भ करनेका मूल स्थान है, इससे दशगुना दश हैं, दशके दशगुने सौ हैं, दश सौ एक एक हजार होते हैं तथा हजारमें भी दशका गुणा करनेपर दश हजार होते हैं, इन्हें शास्त्रों में 'अयुत' संज्ञा दी है ॥ ७ ॥ एक अयुतको दशसे गुणा करनेपर जो प्रमाण आता है उसको लक्ष ( लाख ) कहते हैं । एक लाखको सौसे गुणा करने पर जो प्रमाण आता है उसे कोटि ( करोड़ ) कहते हैं । एक लाखमें अस्सीका गुणा करनेपर जो आये उसमें चार लाख और जोड़ देनेपर जो ( चौरासी लाख ) प्रमाण होता है उसको शास्त्रोंके विशेषज्ञ मुनियोंने 'पूर्वांग' संज्ञा दी है ॥ ८ ॥ १. म नाधिके । २. [ द्वे ] । ३. अड़तालीस । Jain Education International For Private & Personal Use Only सप्तविंश: सर्गः [ ५३२ ] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy