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वराङ्ग
असंयुक्तास्त्वसंबद्धा एकैकाः परमाणवः। तेषां नाम समुदिष्टं सूक्ष्मसूक्ष्मं तु तदबुधैः ॥ २२॥ धर्माधौं यथासंख्यं गतिस्थित्योस्तु कारणम् । तत्परिद्धामिनामेतौ' तयोः शेषः समो मतः ॥ २३ ॥ यथोदकं तु मत्स्यानां गतिकारणमिष्यते । स्गक्रयासमेतानां महीवाधर्म उच्यते ॥ २४ ॥ धर्मद्रव्यं त्रिधा भिन्नमस्तिदेशाप्रदेशतः। अधर्मश्च विधा प्रोक्तश्चास्तिदेशप्रदेशतः ॥ २५ ॥ अस्तिकस्तु, स्वपर्यायैर्लोकमापूर्य धिष्ठितः। देशः संक्षेपभागस्तु प्रदेशोऽसंख्यभागताम् ॥ २६ ॥ वर्तनालक्षणः कालस्त्रिधा सोऽपि प्रभिद्यते। अतोतोऽनागतश्चैव वर्तमान इति स्मृतः ॥ २७ ।।
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वर्गणाओंसे भी अधिक सूक्ष्म परमाणु होते हैं। वे एक-एक परमाणु किसी दूसरे परमाणुसे मिले नहीं रहते है। परमाणुओंमें आपसमें कोई सम्बन्ध भी नहीं रहता है। एक एक परमाणुको अलग अलग विखरा समझिये इस आकार प्रकारके परमाणुओंको हो द्रव्यके विशेषज्ञोंने सूक्ष्म-सूक्ष्म पुद्गल नामसे कहा है ।। २२ ।।
धर्म-अधर्म पुद्गल द्रव्यके बाद धर्म और अधर्म द्रव्यको गिनाया है। इनमेंसे क्रमशः धर्मद्रव्य गमन करनेवालोंकी गतिमें अप्रेरक सहायक होता है और अधर्म द्रव्य ठहरनेमें तटस्थ सहायक होता है। इन दोनों द्रव्योंकी सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह उन्हीं प्राणियोंकी सहायता करते हैं जो गति तथा स्थिति क्रियामें स्वयं प्रवृत्त हो जाते हैं ये दोनों प्रेरणा नहीं करते हैं । २३ ।।
उदाहरणके लिए जलको लोजिये-जो मछलियां चलना ( तैरना ) चाहती हैं, यानी उनके तैरनेमें सहायता देता है, यही अवस्था धर्म द्रव्यकी है। जो व्यक्ति चलते-चलते थक गये हैं और रुकना चाहते हैं तो किसी उपयुक्त स्थानपर रुक (बैठ) जाते हैं । इसी ढंगसे अधर्म द्रव्य भी समतल भूमि या छाया के समान रुकनेमें सहायक होता है ।। २४ ।।
सामान्य दृष्टिसे एक धर्म द्रव्यके ही विशेषणोंकी अपेक्षासे तीन भेद हो जाते हैं प्रथम अस्ति-धर्मद्रव्य, द्वितीय देशधर्मद्रव्य तथा तृतीय प्रदेश-धर्मद्रव्य है । ठोक इसी रूपसे अधर्मद्रव्यके भी अस्ति-अधर्मद्रव्य, देश-अधर्मद्रव्य तथा प्रदेश-अधर्मद्रव्य । ये तीन स्थूल भेद हैं ।। २५ ।।
जिसे अस्ति-धर्म अथवा अधर्म-द्रव्य कहा है वह उसके विशाल व्यापक रूपका द्योतक है जिसके द्वारा उन्होंने पूर्ण लोकाकाशको व्याप्त कर रखा है। निश्चित परिमाणमें व्याप्त दोनों द्रव्योंका (देश-धर्म अथवा देश-अधर्मद्रव्य ) विशेषण होता है । तथा देशके भी असंख्यातवें भागको प्रदेश धर्मद्रव्य अथवा प्रदेश अधर्मद्रव्य कहते हैं ।। २६ ।।
काल काल द्रव्यकी परिभाषा या कार्य है वर्तना, परिणाम आदि कराना है। जगतके निखिल पदार्थोंको परिवर्तित करानेमें 1 १.[परिणामिनावेतौ ]। २.[तयोरेषः । ३. म आस्तिकस्तु ।
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