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________________ 'अजराम्बरहेमभूषणानामपरिम्लानसुवामधारिणीनाम् । शुभरूपकलागुणान्वितानां प्रतिभावं व्रजति घुसुन्दरीणाम् ॥७३॥ स्मितपूर्वमनोज्ञभाषिणीभिः सरतप्रीत्यनकलकारिणीभिः । वरवेषविलासविभ्रमाभी रमते नित्यमतन्द्रितः श्रियाभिः ॥ ७४ ॥ रविकोटिसहस्रभासुरारेणां प्रचलत्कुण्डलहारविभूषितानाम् । कुरुते विभुतादिवश्यतीना भमरेन्द्रः सुकृतादपेतसाक: ।। ७५ ॥ इति मधुरवचोभिरर्थवद्भिः समपनयन्दुरनुष्ठितान्पदार्थान् । अधिगतनयहेतुवादमार्गः स्फुटमवदन्नपतिस्तदा सभायाम् ॥ ७६॥ चतुर्विशः सर्गः चरितम् वह ऐसी स्वर्गीय सुन्दरियोंका पति होता है जिनके निर्मल आकर्षक वस्त्रों तथा सोने आदि बहुमूल्य धातुओंसे बने भूषणोंपर कभी धूल या मैल बैठता ही नहीं है। वे सुन्दर सुगन्धित मालाओं और पुष्पोंसे सजी रहती हैं, वे सब कभी मुरझाते नहीं हैं। उनकी रूपलक्ष्मी शुभ तथा आकर्षक होती है, ललित कलाओंमें पारंगत होती है तथा कोई भी ऐसा गुण नहीं है जो । उनमें न पाया जाता हो । ७३ ॥ वे देवाङ्गनाएँ जब कभी बोलती हैं तो उसके पहिले मुस्कराती हैं उनके शब्द अत्यन्त प्रिय होते हैं, उनकी चेष्टाएँ प्रोतिको बढ़ाती हैं तथा सुरतिको उत्तेजित करती हैं । वेषभूषा कुलीन एवं उदात्त नायिकाओंके उपयुक्त होती है, हावभाव आदि विलास शिष्ट और इष्ट होते हैं तथा रूठना आदि विभ्रम परम हृदयहारी होते हैं। ऐसी प्रियाओंके साथ पुण्यात्मा स्वर्गमें सदा विलास करते हैं । ७४ ।। देवताओंके राजा इन्द्रके गलेमें पड़े हार तथा कानोंके कुण्डलोंकी कान्ति तथा उद्योत इतने विशाल होते हैं कि यदि एक साथ एक दो नहीं हजारों करोड़ सूर्य उदित हो जाय तो उनकी सम्मिलित प्रभा भी उसकी समता न कर सकेगी। ऐसा इन्द्र जो अपने जीवनमें कभी शोककी कल्पनाको भी नहीं जानता है। वह ही अपने पूर्वभवमें अजित पुण्यके प्रभावसे देवगतिमें चिरकाल पर्यन्त स्वर्गके स्वामियोंकी भी प्रधानता करता है ॥ ७५ ।। धर्मज्ञान प्रशंसा राजसभामें उन्नत सिंहासनपर विराजमान सम्राट वरांगराजने गम्भीर अर्थपूर्ण सरल तथा मधुर वचनोंके द्वारा १. [परजोऽम्बर 11, २. [पतिभावं ]। ३. म सहस्र प्रभा । ४. हारभूषितानाम् । ५[विभुतां दिवस्पतीनाममरेन्द्रः]। ६. ( °शोकः )। For Private & Personal Use Only मामयमRAIADMRSAURURSADERSHARIRSTAGRATHI [४ ] www.jainelibrary.org. Jain Education International
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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